एचआईवी वैक्सीन, एचआईवी वायरस के खिलाफ टीका mRNA-1644
एचआईवी वैक्सीन (HIV Vaccine) – एचआईवी, 40 साल पुरानी यह बीमारी लाइलाज बनी हुई है। इस बीमारी के लिए अभी तक 30 टीकों का परीक्षण किया जा चुका है, लेकिन कोई भी सफल नहीं हुआ है। लेकिन अमेरिकी बायोटेक्नोलॉजी कंपनी मॉडर्ना के वैक्सीन के भीतर इस्तेमाल हो रही तकनीक की बदौलत इसे सफलता मिलने की उम्मीद है। और इसलिए वैक्सीन का मानव परीक्षण जल्द ही शुरू होने की भविष्यवाणी की गई है। तो आइए जानते हैं क्या है इस वैक्सीन की तकनीक? और यह टीका कैसे काम करेगा?
एचआईवी वैक्सीन (HIV Vaccine)
क्या है इस वैक्सीन की तकनीक?
मॉडर्ना, इस एचआईवी वैक्सीन को बनाने के लिए एम-आरएनए तकनीक का इस्तेमाल कर रही है। और मॉडर्ना ने इसी प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल कोरोना की वैक्सीन बनाने में भी किया है। जिससे इसकी सफलता की संभावनाएं अधिक दिखाई दे रही हैं।
आम टीके की तरह एचआईवी का टीका नहीं बनाया जा सकता है। आरएनए-आधारित टीकाकरण को एक बेहतर वैक्सीन विकल्प के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि इस प्रणाली में जीवित वायरस का उपयोग नहीं किया जाता है।
इसे अक्सर शेष टीके की तुलना में आसानी से बनाया जा सकता है। इसे तेजी से विकसित भी किया जा सकता है। फाइजर और मॉडर्ना ने इस तकनीक का इस्तेमाल कोरोना की वैक्सीन बनाने में किया है। कोरोना वैक्सीन की सफलता के बाद एचआईवी वैक्सीन के सफल होने की उम्मीद बढ़ गई है।
कैसे काम करेगा यह वैक्सीन?
औपचारिक रूप से इसे mRNA-1644 कहा जाता है। यह हमारे सिस्टम की बी कोशिकाओं को उत्तेजित करने के लिए बनाया गया है। ये एक प्रकार की श्वेत रक्त कोशिकाएं होती हैं। जो एंटीबॉडी बनाते हैं।
ये एंटीबॉडी हमलावर बैक्टीरिया और वायरस को रोकते हैं। ये बी कोशिकाएं न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडी बनाती हैं। जो एक प्रकार का विशिष्ट रक्त प्रोटीन है, जो एचआईवी के सतही प्रोटीन को निष्क्रिय कर देता है। इससे वायरस का असर कम होता है।
मानव परीक्षण कैसे होगा?
मॉडर्ना की वैक्सीन mRNA-1644 का परीक्षण पूरी तरह से स्वस्थ 56 लोगों पर किया जा रहा है। जिन्हें पहले से एचआईवी नहीं है। परीक्षण के माध्यम से वैक्सीन की सुरक्षा और प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में बदलाव की जांच की जाएगी।
क्या चुनौतियां हो सकती हैं?
एचआईवी वायरस दुनिया के भीतर कई सालों से है। और अब तक यह मौन है और इसके कई प्रकार हैं। ऐसे में एमआरएनए आधारित वैक्सीन के जरिए इसे निष्क्रिय करने में कुछ साल लगेंगे।
ऐसी वैक्सीन का भंडारण भी एक बड़ी चुनौती है। mRNA आधारित टीकों को एक विशेष तापमान पर रखने की आवश्यकता होती है। ऐसे में विकासशील देशों में उन टीकों का रखरखाव भी एक बड़ी चुनौती हो सकती है।
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