छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी व इतिहास : Shivaji Maharaj Biography In Hindi
छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी (Chhatrapati Shivaji Maharaj Ki Jivani), Shivaji Maharaj Biography In Hindi: शिवाजी महाराज का इतिहास, भारतवर्ष की धरती पर ऐसे महान शासकों का जन्म हुआ है, जिन्होंने अपनी योग्यता और कौशल के दम पर इतिहास में बहुत ही सुनहरे अक्षरों में अपना नाम दर्ज कराया है। ऐसे ही एक महान योद्धा और रणनीतिकार थे – छत्रपति शिवाजी महाराज। उनका पूरा नाम शिवाजी राजे भोंसले था। 1674 ई. में शिवाजी महाराज का रायगढ़ महाराष्ट्र में राज्याभिषेक हुआ, तभी से उन्हें छत्रपति की उपाधि दी गई।
छत्रपति शिवाजी महाराज की जीवनी व इतिहास
शिवाजी महाराज ने ही भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी। अपने शासनकाल के दौरान वह बहुत ही ठोस और चतुर प्रकार के राजा थे। अपनी सेना, सुव्यवस्थित प्रशासन इकाइयों की सहायता से एक कुशल और प्रगतिशील प्रशासन प्रदान किया था। शिवाजी ने कई वर्षों तक मुगलों से युद्ध किया था।
उन्होंने ‘शिव सूत्र‘ का आविष्कार किया, छापामार युद्ध की नीति और दुश्मन का पूर्ण दमन।
शिवाजी ने, शासन में प्रयुक्त प्राचीन भारतीय हिंदू राजनीतिक प्रथाओं और शिष्टाचार को पुनर्जीवित किया। भारतीय राजाओं की भाषा शैली मराठी और संस्कृत को बनाया।
उनका मानना था कि भाषा की गुलामी विचारों की गुलामी है। परिणामस्वरूप, उन्होंने मुगलों द्वारा हर जगह थोपी जा रही फारसी भाषा का बहिष्कार किया।
शिवाजी महाराज के बारे में संक्षिप्त जीवनी और तथ्य
नाम | छत्रपति शिवाजी महाराज |
पूरा नाम | शिवाजी शाहजी राजे भोंसले |
जन्म | 19 फ़रवरी 1630, शिवनेरी दुर्ग, महाराष्ट्र |
मृत्यु | 3 अप्रैल 1680, महाराष्ट्र |
पिता का नाम | शाहजी राजे भोंसले |
माता का नाम | जीजाबाई |
पत्नी | सईबाई निंबालकर, सोयराबाई मोहिते, पुतलाबाई पालकर, लक्ष्मीबाई विचारे, काशीबाई जाधव, सगणाबाई शिंदे, गुणवंतीबाई इंगले, सकवारबाई गायकवाड |
संतान | संभाजी भोसले या शम्भू जी राजे, राजाराम, दिपाबाई, सखुबाई, राजकुंवरबाई, रानुबाई, कमलाबाई, अंबिकाबाई |
शिवाजी महाराज का प्रारंभिक जीवन
शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी किले में हुआ था। उनके पिता का नाम शाहजी भोसले और माता का नाम जीजाबाई था। शिवनेरी किला पुणे के पास है, शिवाजी ने अपना अधिकांश जीवन अपनी मां जीजाबाई के साथ बिताया। शिवाजी महाराज बचपन से ही बहुत तेज और चतुर थे। शिवाजी ने बचपन से ही युद्ध कला और राजनीति में शिक्षा प्राप्त की थी।
भोसले एक मराठी क्षत्रिय हैं, जो हिंदू राजपूत की एक जाति है। शिवाजी के पिता भी बहुत तेज और बहादुर थे। शिवाजी महाराज के पालन-पोषण और शिक्षा में उनके माता और पिता का बहुत प्रभाव था। शिवाजी को उनके माता-पिता बचपन से ही युद्ध और उस युग की घटनाओं की कहानियाँ सुनाया करते थे।
खासकर उनकी मां उन्हें रामायण और महाभारत की महत्वपूर्ण कहानियां सुनाती थीं, जिनका शिवाजी पर गहरा प्रभाव पड़ा। शिवाजी महाराज का विवाह 14 मई 1640 को सईबाई निम्बालकर के साथ हुआ था।
शिवाजी महाराज का व्यक्तित्व और शासन
छत्रपति महाराज एक कुशल और शक्तिशाली सम्राट के रूप में जाने जाते हैं। शिवाजी को बचपन में उचित प्रारंभिक शिक्षा नहीं मिली थी। लेकिन शिवाजी भारतीय इतिहास और राजनीति से परिचित थे।
शिवाजी ने शुक्राचार्य और कौटिल्य को आदर्श मानकर कूटनीति का सहारा लेना कई बार सही समझा। शिवाजी महाराज एक तेजतर्रार और चालाक शासक थे। वह समकालीन मुगलों की तरह ही कुशल थे।
मराठा साम्राज्य को 4 भागों में बांटा गया था। प्रत्येक राज्य में एक सूबेदार होता था जिसे प्रान्तपति कहा जाता था। प्रत्येक सूबेदार की भी आठ अध्यक्षता वाली समिति होती थी।
शिवाजी ने एक कूटनीति बनाई थी, जिसके तहत बिना किसी पूर्व सूचना के अचानक किसी भी साम्राज्य पर हमला करना, जिसके बाद शासक को अपना सिंहासन हर हाल में छोड़ना पड़ जाता था। इस नीति को गनीमी कावा कहा गया।
शिवाजी महाराज का सैन्य वर्चस्व
1640 और 1641 के वर्षों के दौरान, बीजापुर महाराष्ट्र पर विदेशियों और राजाओं द्वारा हमला किया जा रहा था। शिवाजी महाराज ने बीजापुर के खिलाफ मावलों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया। मावल के राज्य में सब जाति के लोग रहते थे, शिवाजी महाराज ने, बाद में इन सब मावलो को एक दूसरे से मिलाकर, मावला नाम दिया। इन मावलों ने कई किले और महल बनवाए थे।
इन लोगों ने शिवाजी महाराज का बहुत समर्थन किया। बीजापुर उस समय आपसी संघर्ष और मुगल युद्ध से परेशान था, जिसके कारण उस समय बीजापुर के सुल्तान आदिलशाह ने अपनी सेना को कई किलों से हटाकर स्थानीय शासकों को सौंप दिया था।
तभी अचानक बीजापुर का सुल्तान बीमार पड़ गया था और इसका लाभ देखकर शिवाजी महाराज ने अपना अधिकार जमा लिया था। शिवाजी ने बीजापुर के किले पर कब्जा करने की नीति अपनाई और पहले किले तोरण के किले को अपने कब्जे में ले लिया था।
किलों पर शिवाजी महाराज का अधिकार
शिवाजी महाराज ने सुल्तान आदिलशाह के पास दूत के माध्यम से सन्देश भेजा कि यदि आप तोरण का किला चाहते हैं, तो आपको बड़ी राशि का भुगतान करना होगा, किले के साथ-साथ उसका क्षेत्र भी आपको सौंप दिया जाएगा। शिवाजी महाराज बढ़िया कूटनीतिज्ञ थे, उन्होंने आदिलशाह के दरबारियों को पहले ही खरीद लिया था।
आदिलशाह को जब शिवाजी की साम्राज्य विस्तार नीति की जानकारी मिली तो वे देखते रहे। उन्होंने शाहजी राजे को अपने बेटे को नियंत्रण में रखने के लिए कहा लेकिन शिवाजी महाराज ने अपने पिता की परवाह किए बिना, पिता के ही क्षेत्र का प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया और लगान देना भी बंद कर दिया।
शिवाजी 1647 ई. में ही चाकन से निरा तक के क्षेत्र पर अपना अधिकार जमा चुके थे। अब शिवाजी महाराज पहाड़ी क्षेत्रों से मैदानी इलाकों की ओर चलने लगे। शिवाजी ने कोंकण और कोंकण के नौ और किलों पर कब्जा कर लिया था। इस दौरान शिवाजी के कई युद्ध हुए जिसमें देश और विदेशी राजा दोनों शामिल थे। परन्तु विजय शिवाजी महाराज की ही हुई।
शिवाजी महाराज की मुगलों से पहली मुठभेड़
मुगल शासक औरंगजेब का ध्यान उत्तर भारत से दक्षिण भारत की ओर गया। वह शिवाजी के बारे में पहले से ही जानता था। औरंगजेब ने अपने मामा शाइस्ता खां को दक्षिण भारत में सूबेदार बनाया था। शाइस्ता खान अपने 150,000 सैनिकों के साथ पुणे पहुंचा और 3 साल तक लूटपाट की।
फिर छत्रपति शिवाजी ने अपने 350 मावलो से एक बार शाइस्ता पर हमला किया, तब शाइस्ता खान अपनी जान लेकर भाग गया था और इस हमले में शाइस्ता खान को अपनी 4 उंगलियां गंवानी पड़ी थीं।
इस हमले में शिवाजी महाराज ने शाइस्ता खान के बेटे और उसके 40 सैनिकों को मार डाला। उसके बाद औरंगजेब ने शाइस्ता खान को दक्षिण भारत से हटाकर बंगाल का सूबेदार बना दिया।
पुरंदर की संधि
औरंगजेब ने हार नहीं मानी और इस बार उसने शिवाजी के खिलाफ आमेर के राजा जय सिंह और दिलीर सिंह को खड़ा कर दिया। शिवाजी ने जितने भी किलो जीते थे, जय सिंह ने जीत लिया और पुरंदरपुर में शिवाजी को हरा दिया। इस हार के बाद शिवाजी को मुगलों से बातचीत करनी पड़ी। शिवाजी ने 23 किलों के बदले मुगलों का साथ दिया और बीजापुर के खिलाफ मुगलों के साथ खड़े हुए।
शिवाजी और औरंगजेब का सामना
औरंगजेब ने समझौते के बावजूद शिवाजी के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया, उन्होंने शिवाजी और उनके बेटे सम्भाजी राजे (संभाजी) को कैद कर लिया, लेकिन शिवाजी अपने बेटे के साथ आगरा के किले से भाग निकले। अपने घर पहुंचने के बाद शिवाजी ने नए जोश के साथ मुगलों के खिलाफ युद्ध शुरू किया। इसके बाद औरंगजेब ने शिवाजी को राजा के रूप में स्वीकार कर लिया। 1674 में शिवाजी महाराष्ट्र के एकमात्र शासक बने। उन्होंने हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार शासन किया।
छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु
शिवाजी बहुत ही कम उम्र में दुनिया छोड़ गए थे, राज्य की चिंता को लेकर उनके मन में बहुत भ्रम था, जिसके कारण शिवाजी की तबीयत बिगड़ने लगी और वे लगातार 3 सप्ताह तक तेज बुखार में रहे, जिसके बाद उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु केवल 50 वर्ष की आयु में ही हो गयी।
यह भी पढ़े –