लीला नाग की जीवनी, जीवन परिचय और निबंध | Leela Roy Biography
लीला नाग की जीवनी (Leela Nag Ki Jivani), जीवन परिचय और निबंध: Leela Nag Biography in Hindi, लीला नाग शादी के बाद लीला रॉय, एक प्रसिद्ध बंगाली पत्रकार थीं। उनका नाम विशेष रूप से भारत की महिला क्रांतिकारियों में लिया जाता है। भारत के संविधान को मूल रूप देने वाली समिति में 15 महिलाओं को भी शामिल किया गया, लीला रॉय उनमें से एक थीं। उन्होंने संविधान के साथ-साथ भारतीय समाज के निर्माण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
लीला नाग की जीवनी (Leela Nag Ki Jivani)
क्रांतिकारी महिलाओं की प्रसिद्ध संस्था ‘दीपाली संघ’ की संस्थापिका लीला नाग एक महान क्रांतिकारी महिला थीं।
लीला नाग के बारे में संक्षिप्त तथ्य
पूरा नाम | लीला नाग |
अन्य नाम | लीला रॉय (विवाह के पश्चात), लीलावती रॉय |
पति | अनिल चंद्र रॉय |
जन्म | 2 अक्टूबर, 1900, ढाका |
मृत्यु | 11 जून, 1970, कोलकाता |
प्रसिद्धि | बंगाली पत्रकार व स्वतन्त्रता सेनानी |
संगठन | दीपाली संघ, दीपाली स्कूल, नारी शिक्षा मन्दिर, शिक्षा भवन एवं शिक्षा निकेतन। |
अन्य जानकारी | 1946 में, लीला रॉय संविधान सभा में शामिल हुईं और बहसों में सक्रिय रूप से भाग लिया। उन्होंने ‘हिंदू कोड बिल’ के तहत महिलाओं के कई अधिकार दिलवाये। |
Leela Nag Biography in Hindi
लीला नाग के पिता गिरीशचन्द्र नाग बंगाल में सरकारी उच्चाधिकारी थे। फिर भी छिपे तौर पर उन्होंने रासबिहारी बोस जैसे गरम दलीय नेता की सहायता की थी और उन्हें छद्म नाम से भारत से बाहर जाने का ‘पासपोर्ट’ दिलाया था। उनकी मां कुंज लता नाग भी एक शिक्षित महिला थीं, जिन्होंने बालिका लीला नाग को आदर्श जीवन की शिक्षा दी।
बेथने कालेज से अंग्रेजी आनर्स में बी.ए. की डिग्री उन्होंने छात्राओं में प्रथम स्थान लेकर 1921 में प्राप्त की, 1923 में एम.ए. ढाका विश्वविद्यालय से किया। वह ‘छात्र संघ’ की सेक्रेटरी रह चुकी थीं और निखिल बंगाल महिला मताधिकार कमेटी’ की सदस्या भी रही थीं। कांग्रेस-आंदोलन से भी प्रभावित थीं। दिसम्बर 1932 में उन्होंने ढाका के सुप्रसिद्ध ‘दीपाली संघ’ की स्थापना की, जिसका सामान्य उद्देश्य शिक्षा द्वारा लड़कियों के व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास था और विशेष उद्देश्य था, उन्हें क्रान्तिकारी आंदोलन के लिए प्रशिक्षित करना ।
1929 में श्री अनिल राय से विवाह के बाद लीला नाग से लीला राय बन, वह जगह-जगह जन सभाओं में भाषण करने लगीं और एक लोकप्रिय वक्ता बन गईं। उनके प्रभाव का इतना विस्तार हुआ कि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने उन्हें शांति निकेतन में आमंत्रित किया। लेकिन उन्हें नम्रता से इंकार कर वह क्रान्तिकारी गतिविधियों में ही सक्रिय हो गईं। इसके पीछे उनके पति की भी प्रेरणा थी, जो ‘श्री संघ’ के संस्थापक, सुप्रसिद्ध नेता और क्रांतिकारी थे।
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ढाका के इन्सपेक्टर जनरल पुलिस की दिन दहाड़े हत्या के पीछे लीला राय और उनके पति अनिल राय का भी हाथ था। लेकिन उनकी बुद्धिमत्ता के कारण पुलिस को उन पर संदेह नहीं हुआ। पर 18 अप्रैल, 1930 को ‘चटगांव शस्त्रागार कांड’ के समय अनिल राय पहले हमले में ही शामिल थे। इसलिए उन्हें गिरफ्तार कर उन पर मकदमा चलाया गया।
पति की गिरफ्तारी के बाद लीला राय ने ‘श्री संघ’ और ‘दीपाली संघ’ दोनों का भार संभाल लिया। ढाका और . कलकत्ता के बीच छिपे तौर पर गोला-बारूद और शस्त्र लाने ले-जाने का काम ‘दीपाली संघ’ की सदस्याएं ही करती थीं। शहीद प्रीतिलता और अनेक प्रसिद्ध क्रांतिकारी बंगाली लड़कियां इसी ‘दीपाली संघ’ की सदस्याएं थीं।
इसके बाद लीला राय के लिए गुप्त रूप से अपनी गतिविधियां जारी रखना आसान काम नहीं रह गया था। 20 दिसम्बर, 1931 को ‘बंगाल अध्यादेश’ के अन्तर्गत उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया। 6 साल बाद 8 अक्तूबर, 1937 को वह रिहा हुईं। इस दौरान जेल में कैदियों की मांगों को लेकर उन्हें दो बार भूख हड़ताल करनी पड़ी थी।
अपनी गिरफ्तारी से सात महीने पहले लीला राय ने महिलाओं की एक पत्रिका ‘जयश्री’ का सम्पादन संचालन भी किया था। पत्रिका के उद्घाटन के समय गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकर उपस्थित थे। इस पत्रिका के माध्यम से उनके जोशीले विचारों के कारण भी उनकी गिरफ्तारी निकट आ गई थी। 12 दिसम्बर, 1981 को इसी पत्रिका ‘जयश्री’ की ‘स्वर्ण जयन्ती’ का उद्घाटन करते हुए भूतपूर्व राष्ट्रपति श्री नीलम संजीव रेड्डी ने श्रीमती लीला राय के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की थी।
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