क्षीरोदा सुन्दरी चौधरी – क्रान्तिकारियों को बचाने के लिए दर-दर भटकती रही
क्षीरोदा सुन्दरी चौधरी (Kshiroda Sundari Chowdhary): क्षीरोदा सुन्दरी का जन्म मैमनसिंह जिला के सुंदाइल गांव में 1883 में हुआ था। पिता शिवसुन्दर राय और माता दुर्गा सुन्दरी देवी की इस लड़की का विवाह खारूआ ग्राम के बृज किशोर चौधरी से हुआ था।
Kshiroda Sundari Chowdhary – क्षीरोदा सुन्दरी चौधरी
क्षीरोदा सुन्दरी का जीवन परिचय
30 जून, 1961 को डिप्टी सुपरिटेंडेंट पुलिस बसन्त चटर्जी की हत्या के बाद सुरेन्द्र मोहन घोष और क्षितीश चौधरी के वारंट निकले तो वे दोनों भूमिगत हो गए। भागकर मैमनसिंह चले गए और वहां पुलिस क्लब की बगल में ही मकान लेकर रहने लगे कि पुलिस को शक न हो। हुआ भी वही। पुलिस उन्हें इधर-उधर ढूंढ़ती रही और ये दोनों क्षीरोदा सुन्दरी को साथ लेकर पुलिस की नाक के नीचे रहते रहे। कुछ दिन बाद ‘भारत-जर्मन षड्यंत्र’ के सर्व प्रमुख नेता यदु गोपाल मुखर्जी और प्रसिद्ध विप्लवी नलिनीकान्त भी आकर वहीं रहने लगे। क्षीरोदा सुन्दरी इनके साथ छद्म मां बन कर रहती थीं।
क्षीरोदा सुन्दरी का जन्म व विवाह
Kshiroda Sundari का जन्म मैमनसिंह जिला के सुंदाइल गांव में 1883 में हुआ था। पिता शिवसुन्दर राय और माता दुर्गा सुन्दरी देवी की इस लड़की का विवाह खारूआ ग्राम के बृज किशोर चौधरी से हुआ था। लेकिन 32 साल की उम्र में वह विधवा हो गई थीं। विप्लवी क्षितीश चौधरी उनके देवर का लड़का था। मैमतसिंह के प्रसिद्ध विप्लवी नेता सुरेन्द्र मोहन घोष के साथ युगान्तर दल’ में काम करते हुए क्षितीश चौधरी को अपनी इस चाची से बहुत सहायता मिली।
क्षीरोदा सुन्दरी की फरारी
जीवन में क्षीरोदा सुन्दरी को भी उनके साथ भूमिगत हो जाना पड़ा। इसी सिलसिले में उन्हें अनेक कष्ट झेलते हुए यहां-वहां भटकना भी पड़ा। पुलिस पीछे लगी रहती थी और ये लोग एक से दूसरी जगह बदलते हुए छिपते रहते थे। सुरेन्द्र मोहन घोष के पिता कामिनी मोहन घोष विप्लवी दल के प्रतिष्ठित नेता थे और क्षितीश चौधरी की यह चाची दल की प्रतिष्ठित मां। इनकी छाया में रहते हुए अनेक ने पुलिस को खूब चकमे दिए और पकड़ में नहीं आए।
जैसे ही इन लोगों को खबर मिली कि मैमनसिंह पुलिस क्लब के पास वाला घर पुलिस की निगाह में आ गया है, क्षीरोदा सुन्दरी को साथ लेकर सभी लोग नारायण गंज के देवभोग स्थान में चले गए। केवल नेता सुरेन्द्र मोहन घोष इनके साथ न जाकर कहीं अन्यत्र निकल गए। अब तो पुलिस इनकी खोज में सारे बंगाल का चप्पा-चप्पा छान रही थी। जैसे ही भनक पड़ती, ये लोग पुलिस-घेरा तोड़ कर भी भेष बदल कर निकल जाते। इसी तरह देवभोग से सरिषाबाड़ी, फिर वहां से जमालपुर, सीराजगंज। हर जगह क्षीरोदा सुन्दरी मां बन कर उन्हें आश्रय देती रहीं। यद गोपाल मुखर्जी, नलिनीकान्त, सतीश ठाकुर, नगेन्द्र शेखर चक्रवर्ती, उषा राय, पृथीष बसु, क्षितीश चौधरी आदि अनेक क्रान्तिकारी इस मां की शरण में रहने के लिए आते-जाते रहे।
आगे चलकर तो ऐसा समय आया कि महीने-डेढ़ महीने बाद ही इन्हें जगह बदलनी पड़ जाती। अंत में घुबड़ी गांव चुनना पड़ा। पहले दो लोग वहीं माछ-भीत का होटल खोलने भेजे गए। फिर सभी लोग जाकर इस गांव में बस गए।
असम के जंगलों में शरण
गिरीन्द्रनाथ राय एक नया नाम भी यहां आ जुड़ा। कुछ लोग होटल में रहते, कुछ अलग मकान में क्षीरोदा सुन्दरी यहां भी मां का दायित्व निभाती रहीं। पर इस सुदूर गांव में भी ये लोग डेढ़ महीना से अधिक नहीं रह सके। अपने गुप्तचरों से यह सूचना मिलते ही कि पुलिस इधर भी पहुंचने वाली है, ये लोग असम के जंगलों में भाग गए। घने जंगल के बीच पास-पास बने असम के छोटे-छोटे गांवों में बिखर कर रहते हुए अब ये लोग स्वयं को काफी सुरक्षित पा रहे थे। क्षीरोदा सुन्दरी दो महीने तक यहां भी इनके साथ रहीं।
अफवाहें फैलने लगी
लम्बे समय तक घर से गायब रहने के कारण क्षीरोदा, सुन्दरी के रिश्तेदारों को चिन्ता हुई। उनके गांव में तरह-तरह की अफवाहें फैलने लगी थीं। तब क्रान्तिकारियों को लगा, अब इनका आश्रय लेना हम सब के लिए ठीक नहीं होगा। यह सोच कर उन्होंने क्षीरोदा सुन्दरी को काशी भेज दिया। कुछ समय, तक वह काशी में रहीं, फिर वहां से अपनी ससुराल खारूआ गांव लौट गईं। काशी रहते हुए भी उन्होंने कई जगहें बदलीं । फिर एक धर्मशाला के रजिस्टर में साथी क्रान्तिकारियों के लिए एक गुप्त संदेश छोड़ दिया कि वह अपने गांव जा रही हैं।
जैसे ही पुलिस को खबर मिली कि क्षीरोदा सुन्दरी खारूआ गांव लौट आई हैं, पुलिस ने अचानक उस मकान पर घेरा डाल दिया। पूछताछ शुरू हुई। क्षीरोदा सुन्दरी ने कहा, “मैं तो काशी में थी। आप फलां फलां धर्मशाला से पूछ लीजिये। ” क्षीरोदा सुन्दरी, ते तीन चार धर्मशालाओं के नाम-पते पुलिस को बता दिए। केवल वह पता नहीं बताया, जहां उन्होंने क्रान्तिकारियों के लिए गुप्त संदेश छोड़ा था। इसलिए पुलिस
पूछताछ करके निराश वापस लौट आई। क्षीरोदा सुन्दरी को गिरफ्तार करके भी, कोई प्रमाण न मिलने के कारण, शीघ्र रिहा कर देना पड़ा।
क्षीरोदा सुन्दरी की 1916-17 की यह कहानी तब प्रकाश में आई, जब 1959 में 76 साल की उम्र में उन्होंने खुद इसे लिखा।
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