फांसी की सजा सुनाने के बाद जज अपनी कलम की नीब तोड़ देते हैं, आखिर क्यों ?
फांसी की सजा सुनाने के बाद (Fansi Ki Saja Sunane Ke Baad) जज अपनी कलम की नीब क्यों तोड़ देते हैं? आपने अक्सर फिल्मों में देखा होगा कि जज फांसी की सजा सुनाने के बाद कलम की निब तोड़ देते है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि जज ऐसा क्यों करते हैं? क्या किसी अपराधी को कलम की निब तोड़े बिना फांसी देने का आदेश दिया जा सकता है? सवाल यह है कि ऐसा क्यों किया जाता है? इसका क्या मतलब है ?
फांसी की सजा सुनाने के बाद (Fansi Ki Saja Sunane Ke Baad) जज अपनी कलम की नीब क्यों तोड़ देते हैं?
आज हम आपको केवल यही बताएंगे कि इसके पीछे की सच्चाई क्या है, जब किसी अपराधी को मौत की सजा सुनाई जाती है तो जज कलम की निब तोड़ देते है ताकि उन्हें किसी और को ऐसी सजा दोबारा न सुनानी पड़े, क्योंकि मौत की सजा रेयर ऑफ रेयरेस्ट केस यानी जघन्यतम अपराध की श्रेणी में आता है।
जिस कलम से मौत की सजा लिखी जाती है तो उसकी निब तोड़ दी जाती है। क्योंकि यह माना जाता है कि अगर फैसले के बाद कलम की नीब टूट गई है, तो उस जज को खुद भी उस फैसले को फिर से बदलने के बारे में सोचने का अधिकार नहीं है। कलम की निब टूटने के बाद इस निर्णय पर पुनर्विचार नहीं किया जा सकता है।
इसका एक कारण यह भी माना जाता है कि इस सजा के बाद व्यक्ति का जीवन समाप्त हो जाता है, इसलिए इसके बाद कलम की निब तोड़ दी जाती है, जिससे कलम का जीवन भी समाप्त हो जाये और उसके बाद उस कलम से कुछ भी और न लिखा जा सके।
मैं आपको एक रहस्य के बारे में बता दूं कि मौत की सजा सुनाते वक्त सिर्फ शाही की कलम का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें कभी भी बॉल पेन का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।
जल्लाद फांसी देने से पहले अपराधी के कान में क्या कहता है ?
फांसी से ठीक पहले जल्लाद अपराधी के पास जाता है और उसके कान में कहता है कि, “क्षमा करें, मैं एक सरकारी कर्मचारी हूं। मैं कानून से बंधा हूं।” इसके बाद अपराधी अगर हिंदू है तो जल्लाद उसे राम-राम कहता है, जबकि अपराधी मुसलमान है तो उसे आखिरी बार सलाम करता है।
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