अक्षय तृतीया का महत्व । श्री हरि विष्णु को प्रसन्न करने का दिन – अक्षय तृतीया
अक्षय तृतीया का महत्व (Akshay Tritiya Ka Mahatva): पुराणों में उल्लेख मिलता है कि इसी दिन नर-नारायण ने अवतार लिया था। प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनारायण के कपाट भी इसी तिथि से ही पुनः खुलते हैं। वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी के मंदिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं। अक्षय तृतीया को व्रत रखने और दान देने का बड़ा ही माहात्म्य है।
अक्षय तृतीया का महत्व (Akshay Tritiya Ka Mahatva)
अक्षय यानी जो कभी खत्म न हो, इसलिए लोग इस दिन कई शुभ कार्यों की शुरुआत करते हैं। माना जाता है कि इस दिन शुरू किए गए काम सुख और समृद्धि लाते हैं, किसी भी शुभ कार्य के लिए मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं समझी जाती।
हिंदू मान्यताओं के मुताबिक वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया होता है, जिसे साल का सबसे शुभ दिन माना गया है। इस बारे में कई पौराणिक मान्यताएं हैं। कुछ लोग कहते हैं कि इसी दिन देवी गंगा स्वर्ग से धरती पर उतरी थीं। वहीं कुछ लोग का मानना है कि इसी दिन ऋषि वेदव्यास ने भगवान गणेश के साथ महाभारत लिखनी शुरू की थी।
खैर, मान्यताएं जो भी हो, इस शुभ दिन को विष्णु के छठे अवतार परशुराम का जन्मदिन भी मनाया जाता है। इस दिन खासतौर पर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। कहा जाता है, इस शुभ दिन जो भी कार्य शुरू किए जाते हैं, उनका अक्षय फल मिलता है। इसी प्रकार से अक्षय तृतीया कहा जाता है।
आज के दिन जो मनुष्य अपने या स्वजनों द्वारा किए गए जाने-अनजाने अपराधों की सच्चे मन से ईश्वर से क्षमा प्रार्थना करें तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा कर देते दें और उसे सद्गुण प्रदान करते हैं। आज के दिन अपने दुर्गुणों को भगवान के चरणों में सदा के लिए अर्पित कर उनसे सद्गुणों का वरदान मांगना चाहिए।
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कैसे करें व्रत
इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें और अपने नित्य कर्म व घर की साफ-सफाई से निवृत्त होकर स्नान करें। इस दिन पूरे दिन उपवास रखें और घर में ही किसी पवित्र स्थान पर विष्णु भगवान की मूर्ति या चित्र स्थापित कर पूजन का संकल्प करें।
संकल्प के बाद भगवान विष्णु को पंचामृत से स्नान कराएं, तत्पश्चात उन्हें सुगंधित चंदन, पुष्पमाला अर्पण करें। प्रसाद में जौ या जौ का सत्तू, ककड़ी और चने की दाल अवश्य शामिल करें और श्रद्धा से उसे विष्णु को अर्पण करें। भगवान विष्णु को तुलसी अधिक प्रिय है, अतः नैवेध के साथ तुलसी अवश्य चढ़ाए।
जहां तक हो सके तो ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ के पाठ भी करें। अंत में भक्ति पूर्वक आरती करें। इससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। क्योंकि इस दिन विष्णु पूजन का विशेष महत्व है।
अक्षय तृतीया की कथा
श्रीकृष्ण के बचपन के दोस्त सुदामा बहुत गरीब थे। वो जब कृष्ण से मिलने उनके महल गए तो साथ में उनके लिए सत्तू ले गए, लेकिन अपने दोस्त का बड़ा-सा महल देखकर संकोचवश कृष्ण को सत्तू नहीं दिया। कृष्ण यह बात भांप गए और उन्होंने सुदामा से पूछा पोटली में क्या है और उनसे पोटली लेकर सत्तू खाने लगे।
सत्तू मुंह में रखते हुए उन्होंने कहा ‘अक्षयम’ और उसी पल सुदामा की झोपड़ी बड़े से महल में बदल गई और उनके भंडार भर गए। तभी से इस दिन को अक्षय तृतीया के रूप में मनाया जाता है। अन्य मान्यता के अनुसार पांडवों के वनवास के दौरान उन्हें अपने लिए और ब्राह्मणों को भोजन कराने में दिक्कत न हो, इसलिए श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को अक्षयपात्र इसी दिन दिया था। इस पात्र में अन्न कभी खत्म नहीं होता था।
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विशेष महत्व क्यों
अक्षय तृतीया को लोग पूजा करने के साथ गरीबों और ब्राह्मणों को दान देते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किया गया दान और पूजा-पाठ कई गुना ज्यादा अच्छा फल देता है। इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व होता है। कुछ लोग इसे आखा तीज के नाम से भी जानते हैं।
किसी शुभ काम के लिए यह दिन अति शुभ तो होता ही है, लेकिन शादी-ब्याह के लिए यह दिन काफी शुभ माना जाता है। इस दिन बड़े पैमाने पर सामूहिक विवाह भी कराए जाते हैं। अगर किसी की शादी का मुहूर्त न निकल रहा हो तो इस दिन शादी करने में कोई दोष नहीं होता है।
इसके अलावा किसी भी नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उद्घाटन का कार्य इस दिन श्रेष्ठ माना जाता है।
क्या करें ?
इस दिन सत्तू अवश्य खाना चाहिए। नए वस्त्र, आभूषण आदि पहनने चाहिए। अगर आप सक्षम है तो इस दिन सोना खरीदना भी अच्छा माना जाता है।
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