दिव्य यंत्र के लाभ, कवच बन रक्षा करते हैं दिव्य यंत्र
दिव्य यंत्र के लाभ (Divya Yantra Ke Labh): यदि आप व्यापार में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं या अन्य कष्टों को दूर करना चाहते हैं तो इसके लिए आप भी इन दिव्य यंत्रों को अपने पास रख सकते हैं। क्योंकि ये यंत्र कवच का काम करते हैं-
दिव्य यंत्र के लाभ (Divya Yantra Ke Labh)
श्री यंत्र
यह सर्वाधिक लोकप्रिय प्राचीन यंत्र है, इसकी अधिष्ठात्री देवी स्वयं श्रीविद्या हैं और उनके ही रूप में इस यंत्र की मान्यता है। इसे गंगाजल और दूध से स्वच्छ करने के बाद पूजा स्थान या व्यापारिक स्थान तथा अन्य शुद्ध स्थान पर रखा जाता है। इसकी पूजा पूरब की तरफ मुंह करके की जाती है। जिस प्रकार से सब कवचों से चंडी कवच सर्वश्रेष्ठ कहा गया है, उसी प्रकार से सभी देवी देवताओं के यंत्रों में श्रीदेवी का श्री यंत्र सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। इसी कारण से इसे यंत्रराज की उपाधि दी गई है।
दीपावली, धनतेरस या बसंत-पंचमी अथवा पौष मास की संक्रांति के दिन यदि रविवार हो तो इस यंत्र का निर्माण व पूजन का विशेष महत्व होता है। इसके साथ ही श्री महालक्ष्मी यंत्र का भी विशेष महत्व है। श्री महालक्षमी यंत्र की अधिष्ठात्री देवी मां लक्ष्मी स्वयं हैं। इस यंत्र के नित्य दर्शन और पूजन से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
बगलामुखी यंत्र
बगला दस महाविद्याओं में एक है। इसकी उपासना से शत्रु का नाश होता है। इस यंत्र के मध्य बिंदु पर बगलामुखी देवी का आव्हान व ध्यान करना पड़ता है, क्योंकि इसकी उपासना में पीले वस्त्र, पीले पुष्प, पीली हल्दी की माला एवं केसर की खीर का भोग लगता है। इस यंत्र के विशेष प्रयोग से प्रेतबाधा और यक्षिणी बाधा का भी नाश होता है।
श्रीमहाकाली यंत्र
श्मशान साधना में काली उपासना का बड़ा भारी महत्व है, इसी संदर्भ में महाकाली यंत्र का प्रयोग शत्रु नाश, मोहन मारण उच्चाटन आदि कार्यों में किया जाता है। जब अन्य विद्याएं असफल हो जाती है, तब इस यंत्र का सहारा लिया जाता है। महाकाली की उपासना अमोघ मानी गई है। इस यंत्र के नित्य पूजन से अरिष्ट बाधाओं का स्वतः ही नाश हो जाता है और शत्रुओं का पराभव होता है। चैत्र, आषाढ़, अश्विन और माघ की अष्टमी इस यंत्र के स्थापन और महाकाली की साधना के लिए अति उपयुक्त है।
महामृत्युंजय यंत्र
इस यंत्र के माध्यम से मृत्यु को जीतने वाले भगवान शंकर की स्तुति की गई है, भगवान शिव की साधना अमोघ व शीघ्र फलदायी मानी गई है। इसके प्रयोग से व्यक्ति भावी दुर्घटनाओं से बच जाता है। इस यंत्र का पूजन करने के बाद इसका चरणामृत पीने से व्यक्ति निरोग रहता है, इसका अभिषिक्त किया हुआ जल घर में छिड़कने से परिवार में सभी स्वस्थ रहते हैं, घर पर रोग व ऊपरी हवाओं का आक्रमण नहीं होता है।
कनकधारा
लक्ष्मी प्राप्ति के लिए यह अत्यंत दुर्लभ और रामबाण प्रयोग है क्योंकि इस यंत्र के पूजन से दरिद्रता का नाश होता है। यह यंत्र अष्ट सिद्धि और नव निधियों को देने वाला है। लेकिन बेहतर लाभ के लिए इस यंत्र के साथ कनकधारा स्तोत्र का पाठ करना अनिवार्य होता है।
श्रीदुर्गा यंत्र
विशेषकर संकट के समय इस यंत्र की प्रतिष्ठा करके पूजन किया जाता है। नवरात्र में स्थापना के दिन अथवा अष्टमी के दिन इस यंत्र का निर्माण करना व पूजन करना विशेष फलदायी माना जाता है। इस यंत्र पर दुर्गा सप्तशती के अध्याय चार के श्लोक 17 का जाप करने पर दरिद्रता का नाश होता है। व्यक्ति को ऋण से दूर करने बीमारी से मुक्ति में यह यंत्र विशेष फलदायी है।
सिद्धि श्री बीसा यंत्र
नवार्ण मंत्र से सम्पुटित करते हुये इसमे देवी जगदम्बा का ध्यान किया जाता है। यंत्र में चतुष्कोण में आठ कोष्ठक एक लम्बे त्रिकोण की सहायता से बनाये जाते हैं, त्रिकोण को मंदिर के शिखर का आकार दिया जाता है, अंक विद्या के चमत्कार के कारण इस यंत्र के प्रत्येक चार कोष्ठक की गणना से बीस की संख्या की सिद्धि होती है। इस यंत्र को पास रखने से ज्योतिषी आदि लोगों को वचन सिद्धि की भी प्राप्ति होती है। भूत प्रेत और ऊपरी हवाओं को वश में करने की ताकत मिलती है, जिन घरों में भूत वास हो जाता है उन घरों में इसकी स्थापना करने से उनसे मुक्ति मिलती है।
श्रीकुबेर यंत्र
यह धन अधिपति धनेश कुबेर का यंत्र है, इस यंत्र के प्रभाव से यक्षराज कुबेर स्वयं अतुल संपत्ति की रक्षा करते हैं। यह यंत्र स्वर्ण और रजत पत्रों से भी निर्मित होता है, जहां लक्ष्मी प्राप्ति की अन्य साधनायें असफल हो जाती हैं, वहां इस यंत्र की उपासना से शीघ्र लाभ होता है। कुबेर यंत्र की स्थापना गल्ले, तिजोरियों या अलमारियों में की जाती है।
श्रीगणेश यंत्र
गणेश यंत्र सर्व सिद्धि दायक और नाना प्रकार की उपलब्धियों व सिद्धियों को देने वाला है। इस यंत्र के प्रभाव से और भक्त की आराधना से व्यक्ति विशेष पर रिद्धि सिद्धि की वर्षा करते हैं, साधक को इष्ट कृपा की अनुभूति होने लगती है। उसके कार्यों के अंदर आने वाली बाधायें स्वतः ही समाप्त हो जातीं हैं।
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