गणपति यंत्र, विघ्नों को दूर करते हैं गणों के स्वामी गणपति
गणपति यंत्र (Ganpati Yantra): गणपति आदिदेव हैं। ज्योतिष में इनको केतु का देवता माना जाता है। हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहते हैं। चारों दिशाओं में सर्व व्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएं हैं और समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है –
गणपति यंत्र (Ganpati Yantra)
गणेश जी के 12 नाम
सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्णक, लंबोदर, विकट, विघ्न-नाश, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन, इन बारहों नाम से गणेश जी की पूजा की जाए तो इनकी मंगल दृष्टि सदैव बनी रहती है।
गणेश शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं। उनका वाहन मूषक है। ज्योतिष में इनको केतु का देवता माना जाता है। हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहते हैं। चारों दिशाओं में सर्व व्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएं हैं वे लंबोदर हैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है। बड़े कान अधिक ग्राह्य शक्ति व छोटी-पैनी आंखें सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं। उनकी लंबी नाक महाबुद्धित्व का प्रतीक है।
गणों के स्वामी गणपति
गणपति आदिदेव हैं, उनकी शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट और गहरा अर्थ निहित है। शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रवण (ऊं) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्र बिंदु लड्डू और मात्रा सूंड है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार गणेश जी को केतु के रूप में जाना जाता है, केतु एक छाया ग्रह है, जो राहु नामक छाया ग्रह से हमेशा विरोध में रहता है, बिना विरोध के ज्ञान नहीं आता है, और बिना ज्ञान के मुक्ति नहीं है, गणेशजी को मानने वालों का मुख्य प्रयोजन उनको सर्वत्र देखना है, गणेश अगर साधन है तो संसार के प्रत्येक कण में विद्यमान है।
भगवान गणेश की तस्वीर को देखें तो उसमें एक हाथी और मनुष्य का सम्मिश्रण दिखता है, जिसमें उनके नीचे एक चूहा है। यह तस्वीर तीन विश्वो को निरूपित करती है। एक तो स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल या सूर्य, चंद्र और अग्नि। इस प्रतीकात्मकता को जीवों और स्तनधारियों के समूह से लिया गया है। मानवता इसमें बड़े और छोटे विश्वों के बीच कहीं है।
इसी वजह से गणेश को तीन गुणों से संपन्न कहा गया है। तांत्रिक पद्धतियों में गणेश को कुंडलिनी के मूलाधार चक्र का स्वामी माना गया है। इस वर्गाकार के चारों ओर चार पत्ते हैं। इसके अंदर बीज मंत्र से नीचे शिवलिंग का वास होता है। हर बीजमंत्र का एक वाहन होता है और लं का वाहन है हाथी। इसलिए तांत्रिक विचारधारा में गणेश के माध्यम से कुंडलिनी शक्ति को जागृत किया जाता है।
गणपति यंत्र
भगवान गणेश के यंत्र को महागणपति यंत्र कहा गया है। शरद तिलक नाम के एक तंत्र ग्रंथ में महागणपति की उपासना के बारे में कहा गया है कि गणेश को पूजने के लिए साधक को उनका यह रूप ध्यान में लाना चाहिए। अक्षरों से बने कमल के पत्ते पर गणेश विराजमान है। साधक को नौरत्नों वाले द्वीप को ध्यान में रखना चाहिए जो गन्ने के रस के सागर में विद्यमान है।
एक मद्धम शीतल हवा वहां से बह रही है, जो इस द्वीप के तटों से आकर टकराती है। यह स्थान मंदार, पारिजात और अन्य कल्पवृक्षों का वन है। इन नौ रत्नों की आभा से द्वीप की भूमि जगमगा रही है। हाथी मुख पर उनके एक चंद्र विराजमान है। वह लाल रंग के हैं और उनके तीन नेत्र हैं। गणेश के दस हाथों में दस विभिन्न वस्तुएं हैं।
उनके कान हिलाते ही उनके आसपास मंडरा रही मक्खियां दूर हो जाती हैं, जो उनके शरीर से निःसृत पदार्थ से आकर्षित होकर पहुंच रही हैं। गणपति की पूजा के लिए बीज मंत्र है गं। पूजा से पूर्व साधक या साधिका को इसे अपने शरीर पर धारण करना चाहिए और धीमे स्वरों में बीज मंत्र का पाठ करना चाहिए। गणेश को स्वास्तिक निशान के साथ भी दिखाया जाता है, जो चार गं बीजों को साथ रखने से बनता है।
विभिन्न रूप
गणेश को कई रूपों में देखा जाता है । हेरंब, हरिद्रा और उच्छिष्ट गणपति। और इनकी पूजा स्तुति भी अलग अलग है। जैसे, हेरंब गणपति का मंत्र है, ओम गं नमः। वह हजारों सूर्य के समान चमकदार हैं और एक शेर की सवारी करते हैं और विभिन्न रंगों के उनके पांच मुख हैं। उनकी आठ भुजाएं हैं।
जबकि त्रैलोक्यमोहंकार गणेश जो तीनों विश्वों में माया जाल रचने वाले हैं। इसका यंत्र भी पिछले वाले की तरह ही है। हालांकि उसमें षटकोण के बीच कोई त्रिकोण नहीं है। इसकी जगह इसमें उनका मंत्र है – वक्रतुंडे क्लीं क्लीं क्लीं गं गणपते वरावरदा सर्वज्ञानम मे वशमान्य स्वाहा।
सिद्धिविनायक गणपति के लिए मंत्र है, ओम नमो सिद्धिविनायक सर्वकार्यकत्रयी सर्वविघ्नप्रशामण्य सर्वराज्यवश्याकारण्य सर्वज्ञानसर्व स्त्रीपुरुषाकारषण्य। गणेश के इस रूप का प्रयोग खास सिद्धि हासिल करने के लिए और विघ्नों का नाश करने के लिए होता है।
वहीं शक्ति विनायक इनका मंत्र है ओम ह्रीं ग्रीं ह्रीं। इस मंत्र के ऋषि हैं भार्गव। ग्रीं बीज है और ह्रीं शक्ति। इसमें शक्ति विनय का ध्यान किया जाता है। यंत्र षटकोणीय होता है जिसमें यह बीजमंत्र लिखा जाता है।
लक्ष्मी विनायक के लिए षटकोणीय यंत्र का प्रयोग होता है इसके लिए मंत्र है- ओम श्रीं गं सौम्याय गणपत्ये वारवरदा सर्वज्ञानम मे वशमान्य स्वाहा।
हरिद्रा रूप के लिए मंत्र है- ओम हं गं ग्लां और इसका यंत्र लक्ष्मी विनायक जैसा ही होता है, जिसके मध्य में बीजमंत्र रखा जाता है। इस रूप में चार भुजाधारी गणेश पूरी तरह पीत वस्त्रों में दिखाए जाते हैं। एक हाथ उनकी सूंढ़ को छू रहा होता है।
कथा
प्राचीन समय में सुमेरू पर्वत पर सौभरि ऋषि का अत्यंत मनोरम आश्रम था। उस आश्रम में सौभरि ऋषि अपनी पत्नी मनोमयी के साथ रहते थे। एक दिन ऋषि लकड़ी लेने के लिए वन में गए और मनोमयी गृह-कार्य में लग गई। उसी समय एक दुष्ट कौंच नामक गंधर्व वहां आया और उसने लावण्यवती मनोमयी को देखा तो व्याकुल हो गया। कौंच ने ऋषि-पत्नी का हाथ पकड़ लिया। रोती और कांपती हुई ऋषि पत्नी उससे दया की भीख मांगने लगी। उसी समय सौभरि ऋषि आ गए। उन्होंने गंधर्व को श्राप देते हुए कहा ‘तूने चोर की तरह मेरी सहधर्मिणी का हाथ पकड़ा है, इस कारण तू मूषक होकर धरती के नीचे रहेगा और चोरी करके अपना पेट भरेगा।’
कांपते हुए गंधर्व ने मुनि से प्रार्थना की ‘दयालु मुनि, अविवेक के कारण मैंने आपकी पत्नी के हाथ का स्पर्श किया था। मुझे क्षमा कर दें।’ ऋषि ने कहा मेरा श्राप व्यर्थ नहीं होगा, तथापि द्वापर में महर्षि पराशर के यहां गणपति देव गजमुख पुत्र रूप में प्रकट होंगे तब तू उनका वाहन बन जाएगा, जिससे देवगण भी तुम्हारा सम्मान करने लगेंगे।
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