कलश का महत्व, कलश की स्थापना से आते हैं देवता

कलश का महत्व (Kalash Ka Mahatva): किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या पूजा समारोह के दौरान कलश स्थापना का विधान है। शास्त्रों के मुताबिक मंत्रोच्चार के साथ स्थापित कलश की पूजा वरुण देव को प्रसन्न करने के लिए की जाती है। आइए जानें कलश पूजन से जुड़े और विधि-विधान –

कलश का महत्व (Kalash Ka Mahatva)

कलश का महत्व
Kalash Ka Mahatva

कलश स्थापना करने से पहले कुमकुम या रोली से अष्टदल कमल बनाना चाहिए । फिर उसके बाद भूमि को स्पर्श करते हुए निम्न मंत्र को पढ़ें और सप्तधान्य अथवा गेहूं या जौ एक अंजुलि जमीन पर रखें जहां कलश स्थापित करना हो।

ऊं भूरशि भूमिरस्यदितिरसि विश्वधाया विश्वस्य भुवनस्य धर्त्रीं, पृथ्वी यच्छ पृथ्वी दृहं पृथ्वी मा हिंसीः 

कलश के अंदर सर्वोषधि (मुरा, जटामांसी, वच, कुछ, शिलाजीत, हल्दी, दारूहल्दी, सठी, चम्पक, मुस्ता) को डालते वक्त निम्न मंत्र पढ़ना चाहिए 

ऊं या औषधीः पूर्वा जाता देवेभ्यस्त्रियुगं पुरा, मनै नु बभ्रुरूणामहं शतं धामानि सप्त च।

हिन्दू रीति के अनुसार जब भी कोई पूजा होती है, तब मंगल कलश की स्थापना अनिवार्य होती है। शास्त्रों की मानें तो पूजा के समय कलश को पृथ्वी के रूप में स्थापित कर पूजा किया जाता है, जिसके साथ कई देवी- देवताओं का भी आवाहान किया जाता है। चूंकि पृथ्वी एक कलश की भांति है, जो अपने गर्भ में अथाह जल को समाए हुए है। 

उसी को प्रतीक मान कलश स्थापना किया जाता है। कलश स्थापना के समय प्रायः निम्न मंत्र का जप किया जाता है- 

कलशस्य मुखे विष्णु कंठे रुद्र समाश्रिताः मूलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृताः ।
कुक्षौतु सागरा सर्वे सप्तद्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो, यजुर्वेदो सामगानां अथर्वणाः अडेश्च सहितासर्वे कलशंतु समाश्रिताः । 

अर्थात् सृष्टि के नियामक विष्णु, रुद्र और ब्रह्मा त्रिगुणात्मक शक्ति लिए इस ब्रह्मांड रूपी कलश में व्याप्त हैं। समस्त समुद्र, द्वीप, यह वसुंधरा, ब्रह्मांड के संविधान चारों वेद इस कलश में स्थान लिए हैं। कलश स्थापना को लेकर वैज्ञानिक तर्क भी दिए गए हैं। 

तांबे के पात्र में जल, विद्युत चुम्बकीय ऊर्जावान बनता है। ऊंचा नारियल का फल ब्रह्मांडीय ऊर्जा का ग्राहक बन जाता है। जैसे विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए बैटरी या कोषा होती है, ठीक वैसे ही मंगल कलश ब्रह्मांडीय ऊर्जा संकेंद्रित कर उसे बहुगुणित कर आसपास विकिरित करने वाली एकीकृत कोषा है, जो वातावरण को दिव्य बनाती है। 

कलश स्थापना के समय कलश में कच्चे सूत्र बांधने का विधान है। इसके बारे में बताया गया है कि सूत्र (बांधा गया लच्छा) विद्युत कुचालक होने के कारण बाह्यांडीय बलधाराओं का अपव्यय रोकता है। कलश जल में दूर्वादल डालने का विधान है। पीपल, आम, गूलर, जामुन तथा वट इन पांच वृक्षों के पत्तों को समस्त मांगलिक कार्यों में ‘पंच पल्लव’ कहकर सम्मानित किया गया है। 

‘इष्टं धर्मेण योजयेत्’ इस न्याय से कलश तथा पंच-पल्लवों की संगति की गई है। सोने, चांदी, मोती, पन्ना और प्रवाल (मूंगा) ये पंच रत्न होते हैं। वेद-मंत्र है कि जो रत्न दान करता है उसे सूर्य भाग्यशाली बनाते हैं। पंच पल्लवों से कलश शोभित होता है और पंच रत्नों से श्रीमंत बनता है। कलश में देवता की स्थापना करनी हो तो उस पर धान्य से परिपूर्ण पात्र रखना पड़ता है और यदि केवल मांगलिक कलश हो तो उस पर नारियल खड़ा करके रख दिया जाता है। इस प्रकार कलश को रचना पूर्ण होती है।

स्वस्तिक क्यों

प्रायः कलश स्थापना के समय धर्म गुरु उस पर गोबर, कुमकुम या रोली से स्वस्तिक की आकृति बनाते हैं। इसके बारे में कहा गया है कि जिस प्रकार कलश पर सूर्य देव आकर बैठते हैं, उसी प्रकार जल भरे कलश पर वरुण देव भी विराजमान होते हैं। और स्वस्तिक के रूप में वरुण देव को पूजा जाता है।

तत्पयामिं बह्मणा वेदमान-स्तदाशास्ते यजमानो हविर्थिः। अहेड्मानो वरुणेह बोध्यु-रुशंस मान आयुः  प्रभाषी ॥

अर्थात्, हे वरुण ! तुझे प्रणाम करते-करते मैं, तेरे समीप आता हूँ। इस निमित्त यज्ञ करने वाला भक्त तुझे आहुति अर्पित करके तुझसे याचना करता है। हे वरुण ! तू प्रसन्न होकर मेरे पास रह। मेरी आयु कम मत करना। देख तेरी कीर्ति चारों ओर व्याप्त हो रही है। तू हमारी रक्षा करना और अनुष्ठान को निर्विघ्र पूरा होने में मदद करना।

लाभ

इस छोटे-से कलश में समस्त देव, सप्त सागर, सप्त सरिता, सप्त द्वीप, धरित्री, चारों वेद, गायत्री और सावित्री सभी विराजमान रहते हैं। ये सब पाप, क्षय तथा शांति के लिए सब एक ही प्रतीक में एकत्र होकर उनके विरोध का शमन करते हैं। कलश यदि बड़ा हो तो वह घट कहलाता है। नवरात्रों में स्थापित घट, देवी का घट होता है। संक्रांति पर वही घट सौभाग्यवती को अखंड सौभाग्य देने वाला होता है। वास्तु के अनुसार घर में सदैव सुसज्जित कलश शांति, सुख, समृद्धि की वृद्धि करता है।

वस्तुओं का महत्व

कलश में जल के रूप में वरुण की स्थापना की गई है, पृथ्वी के रूप में स्थल कारक सप्तमृत्ति का, औषधि के रूप में सर्वोषधि, स्थल बीज के रूप में सुपारी, जल, बीज के रूप में नारियल, क्योंकि बीज के अंदर जीव है और जब जीव है तो आत्मा का आना जरूरी है, कारक कलश है, इस प्रकार वरुण देवता का ध्यान पूजा आदि कलश के रूप में संपन्न किया जाता है।

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अस्वीकरण – लेख में उल्लिखित सलाह और सुझाव केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य के लिए हैं। Mandnam.com इसकी पुष्टि नहीं करता है। इसका इस्तेमाल करने से पहले, कृपया संबंधित विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लें।

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