कुंडली में सूर्य का प्रभाव, मिश्रित फल देता है सूर्य का एकादश भाव
कुंडली में सूर्य का प्रभाव (Kundli Mein Surya Ka Prabhav): वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है। वैदिक काल में आर्य सूर्य को ही सारे जगत का कर्ताधर्ता मानते थे। कुंडली के विभिन्न भावों में स्थित सूर्य का असर भिन्न होता है, जो अन्य ग्रहों से युति कर शुभ अशुभ प्रभाव देता है –
कुंडली में सूर्य का प्रभाव (Kundli Mein Surya Ka Prabhav)
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1. कुंडली के बारह भाव में सूर्य का फल
प्रथम भाव में सूर्य
इस भाव का सूर्य व्यक्ति को स्वाभिमानी, शूरवीर, क्रोधी बनाता है। परिवार से व्यथित, धन में कमी, वायु पित्त आदि से शरीर में कमजोरी होती है।
दूसरा भाव में सूर्य
प्रभावशाली, पूर्ण सुख की प्राप्ति, धन अस्थिर लेकिन उत्तम कार्यों में खर्च, स्त्री के कारण परिवार में कलह, मुख और नेत्र रोग, शादी के बाद जीवनसाथी के पिता की हानि।
तीसरा भाव में सूर्य
प्रतापी, पराक्रमी, विद्वान, विचारवान, कवि, राज सुख, मुकदमें में विजय, भाइयों के अंदर राजनीति होने से परेशानी।
चौथे भाव में सूर्य
हृदय में जलन, शरीर से सुंदर, गुप्त विद्या प्रेमी, विदेश गमन, राजकीय चुनाव आदि में विजय, मुकदमे आदि में पराजित।
पंचम भाव में सूर्य
कुशाग्र बुद्धि, धीरे-धीरे धन की प्राप्ति, पेट की बीमारियां, राजकीय शिक्षण संस्थानों से लगाव।
छठा भाव में सूर्य
ऐसे जातक निरोगी और न्यायवान होते है। शत्रु नाशक, मातृकुल से कष्ट।
सप्तम भाव में सूर्य
कठोर, राज्य वर्ग से पीड़ित, व्यापार में हानि, स्त्री कष्ट आदि।
सूर्य का आठवें भाव में होना
धनी, धैर्यवान,चिंता से हृदय रोग, आलस्य से धन नाश, नशे आदि से स्वास्थ्य खराब होता है।
नवम भाव में सूर्य
यदि कुंडली में सूर्य नवें भाव में स्थित है तो ऐसे जातक योगी, तपस्वी, ज्योतिषी, साधक, सुखी जीवन व्यतीत करने वाले होते हैं, लेकिन स्वभाव से क्रूर भी होते हैं।
दसवां भाव में सूर्य
व्यवहार कुशल, राज्य से सम्मान, उदार, ऐश्वर्य, माता को नकारात्मक विचारों से कष्ट, अपने ही लोगों से बिछोह आने की संभावना होती है।
ग्यारहवें भाव में सूर्य
धनी, सुखी, बलवान, स्वाभिमानी, सदाचारी, शत्रुनाशक, संपत्ति की प्राप्ति, पुत्र की पत्नी या पुत्री के पति से कष्ट होता है।
बारहवें भाव में सूर्य
ऐसे लोग उदासीन, आलसी, नेत्र व मस्तिष्क रोगी होते हैं। लड़ाई- झगड़े और बहस में विजय भी पाते हैं। इस तरह बारहों भाव में सूर्य अन्य ग्रहों के साथ मिलकर अलग-अलग प्रभाव देता है।
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2. कुंडली में आय भाव
एकादश भाव जन्म कुंडली में आय भाव कहलाता है। इस भाव में बैठा कोई भी ग्रह शुभ परिणाम देता है ऐसी आम धारणा है। इस भाव में अशुभ ग्रह, नीचस्थ ग्रह, शत्रु क्षेत्री ग्रह व अशुभ प्रभाव से ग्रस्त ग्रह कभी भी शुभ परिणाम नहीं देते।
यहां से संतान, विद्या, प्रेम, मनोरंजन भाव पर पूर्ण दृष्टि पड़ती है। इस भाव पर भी यहां से देखने वाले ग्रहों का शुभ अशुभ प्रभाव पड़ता ही है।
यदि आपकी कुंडली के एकादश भाव में सूर्य नीच का है तो आय के मामलों में बाधा आती है, लेकिन विद्या, संतान भाव उच्च दृष्टि होने से संतान का सुख उत्तम रहेगा, उसकी शिक्षा पूरी होगी। जबकि स्वराशिस्थ सूर्य आय के मामलों में ठीक रहेगा लेकिन शिक्षा व संतान के क्षेत्र में मिश्रित प्रभाव रहेगा।
सिंह लग्न में सूर्य बुध की राशि होने से इसके शुभ फल ही मिलेंगे। आय भाव पर मित्र ग्रह का नजर होगा, वही पंचम भाव पर मित्र दृष्टि डालेगा। एकादश भाव पर धनु का सूर्य भी उत्तम परिणामदायक होगा।
इस भाव में मीन का सूर्य भी शुभ फलदाई रहेगा। विद्या, संतान, आय से लाभदायक रहेगा। मकर का सूर्य आय भाव में व पंचम भाव में शुभ नहीं रहेगा। वृश्चिक का सूर्य आय भाव के लिए उत्तम रहेगा, वही पंचम भाव पर इसका प्रभाव मिला-जुला होगा।
इस भाव में बैठा सूर्य मान-प्रतिष्ठा देगा और राजसुख उत्तम रहेगा। अपने परिवार में प्रमुख रहेगा, दीर्घायु होने के साथ-साथ धार्मिक प्रवृत्ति का भी होगा। इसके विपरीत यदि सूर्य अशुभ है तो ऐसे कुंडली वाले जातक झूठा तथा दूसरों को धोखा देने वाले भी हो सकते हैं।
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3. नीच के सूर्य के उपाय
अगर कुंडली के किसी भी भाव में सूर्य नीच है और उसका प्रभाव बुरा है तो इसके लिए भी ज्योतिष में उपाय है।
- अशुभ सूर्य होने पर माणिक नहीं पहने और अभक्ष पदार्थों का सेवन न करें।
- 5 बादाम अपने सिरहाने रखें और प्रातः मंदिर में रख दें। इस प्रकार 43 दिन तक लगातार इस प्रयोग को करें। इस उपाय से सूर्य के अशुभ प्रभाव से बचा जा सकता है।
4. सूर्य का अन्य ग्रहों से सम्बन्ध
- चंद्र के साथ इसकी मित्रता है।
- मंगल भी सूर्य का मित्र है।
- बुध भी सूर्य का मित्र है तथा हमेशा सूर्य के आसपास घुमा करता है।
- गुरु यह सूर्य का परम मित्र है, दोनों के संयोग से जीवात्मा का संयोग माना जाता है। गुरु जीव है तो सूर्य आत्मा।
- शनि सूर्य का पुत्र है, लेकिन दोनों की आपसी दुश्मनी है, जहां से सूर्य की सीमा समाप्त होती है, वहीं से शनि की सीमा चालू हो जाती है।
- शुक्र सूर्य का शत्रु है।
- वही राहु सूर्य और चंद्र दोनों का दुश्मन है। एक साथ होने पर जातक के पिता को विभिन्न समस्याओं से ग्रसित क्यों देता है।
- केतु यह सूर्य के सम है।
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