कुशा का महत्व, बहुत काम की वनस्पति है कुश
कुशा का महत्व (Kusha Ka Mahatva): अनेक धर्म ग्रंथों में कुश की उपयोगिता बताई गई है। साधना, तप एवं पूजा-अनुष्ठान आदि सभी कार्यों में कुश आसन को पवित्र और उपयोगी माना गया है। लेकिन क्यों ?
कुशा का महत्व (Kusha Ka Mahatva)
कुश का पवित्री बनाने का भी मंत्र होता है परंतु सामान्य लोगों के लिए यह सहज नहीं होता। ऐसी स्थिति में पुरोहित से निवेदन करके शुद्ध पवित्री बनवा लें। जब कभी आप कोई पूजन-अनुष्ठान करें तो उस समय इस पवित्री को धारण करें।
अनुष्ठान समाप्ति के पश्चात इसे उतार कर सुरक्षित स्थान पर रख दें। ध्यान रहें, कुश का प्रयोग केवल सात्विक कार्यों में ही किया जाता है।
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कुश के अनेक प्रयोगों का वर्णन तंत्र शास्त्रों में है। धन-धान्य और समृद्धि से लेकर इसे शांति, सात्विकता, पवित्रता और विवेक की वृद्धि करने वाला कहा गया है।
जब हम कोई पूजा साधना करते हैं तो उस समय बैठने के लिए जो आसन होता है, वह आसन यदि कुश का होता है तो इसे सर्वोत्तम कहा गया है। कुश के आसान को सर्व सिद्धिदायक, धनवर्धक और देवानुकूल कहा गया है।
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धार्मिक अनुष्ठान में कुश
प्रत्येक पूजा-पाठ में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा होती और गणेश की पूजा में दूब या दूर्वा का प्रयोग होता है। शिव पार्वती जी को भी दूर्वा प्रिय है परंतु अन्य देवी-देवताओं की पूजा में किसी अन्य घास के प्रयोग का वर्णन नहीं मिलता है।
कुश ही एक ऐसा इकलौता घास है जिसका प्रयोग न केवल प्रत्येक देवी-देवताओं के पूजन अनुष्ठान में होता है, बल्कि पितरों और प्रेतों के लिए किए जाने वाले कृत्यों में भी इसका इस्तेमाल अत्यंत प्रभावकारी माना गया है।
कुश द्वारा जल का छिड़काव करना तथा मंडप आदि की रचना में कुश का प्रयोग यह दर्शाता है कि जीवन में प्रत्येक कार्य में कुश कितना उपयोगी है। आपने देखा भी होगा कि कोई भी धार्मिक अनुष्ठान हो अथवा कोई पूजा-पाठ हो या कोई संस्कार हो, आपके पंडित जी अर्थात आपके पुरोहित जी आपको कुश की पवित्री धारण करवाते हैं।
यह पवित्री कुश की बनी हुई मुद्रिका अर्थात अंगूठी होती है। हवन पूजन के अलावा भी पितृ आह्वाहन, श्राद्ध कर्म या अन्य पितृशांति कर्मों में पवित्री धारण कराई जाती है। इसको धारण करने या कराने का उद्देश्य ही होता है कि उस समय साधक का तन मन पवित्र हो जाए और साधक बाहरी बाधाओं से सुरक्षित हो जाए।
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कुश की जड़ के फायदे, धनदायक कुश मूल
कुश की जड़ को धन प्रदायिनी कहा गया है। इसके लिए आप अपने पुरोहित से संपर्क कर ये जानकारी ले लें कि ‘रवि पुष्य योग’ कब है ? इस योग में जाकर कुश की जड़ ले आएं और उसे गंगाजल से धोकर किसी पवित्र स्थान पर रख दें और देवताओं की मूर्ति के समान महत्व देते हुए पूजन करें।
तत्पश्चात कुश मूल को किसी लाल कपड़े में लपेटकर अपनी तिजोरी या भंडार गृह में रख दें और प्रतिदिन धूप दीप के द्वारा पूजन करते रहें। इस प्रयोग से धन धान्य में वृद्धि होती है।
यही नहीं इसकी माला को भी धन धान्य प्रदायक कहा गया है। इस प्रयोग के लिए भी कुश के जड़ को ‘रवि पुष्य योग’ में घर ले आएं। उन गांठो में सुई से छेद करना चाहिए और धागे में पिरो लेना चाहिए।
कुश की जड़ से बनी मोतियों की संख्या 108 होनी चाहिए। इस माला से किया गया मंत्र-जाप शीघ्र प्रभावी और लाभकारी होता है। धन-धान्य और समृद्धि के लिए की जाने वाली सभी साधनाओं में यदि इस माला से जप किया जाए तो सर्वोत्तम होगा।
कुश ग्रंथि
ग्रंथि अथवा गांठ जो कुश के तनों में पाई जाती है। इसे आम बोलचाल की भाषा में कुश का बांदा भी कहते हैं। यह ग्रंथी कुश के पौधों के तनों ने कहीं भी एक काली गांठ के समान हो जाती है। इसका आकार छोटा अथवा बड़ा हो सकता है, जो छोटे बादाम के आकार से लेकर सुपारी के आकार तक की पाई जाती है।
यह बड़ी ही समृद्धिदायक होती है। इसे घर में लाने का विधान कुछ इस प्रकार है। भरणी नक्षत्र में इसे घर लाएं और गंगाजल से धोकर अपने पूजा स्थल पर लक्ष्मी स्वरूप मानकर स्थापित करें।
तत्पश्चात विधि-विधान से लाल चंदन, सिंदूर, लौंग, इलायची, कपूर, अक्षत, पुष्प आदि से पूजन करें और लक्ष्मी मंत्र का जाप करें। इसके बाद उसे लाल कपड़े में लपेटकर तिजोरी या भंडार में सुरक्षित रख दें। यह प्रयोग बड़े ही चमत्कारिक ढंग से आपके धन धान्य में वृद्धि करेगा।
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