मंगला गौरी व्रत, सुहाग को लंबी उम्र देती हैं मंगला गौरी
मंगला गौरी व्रत (Mangala Gauri Vrat): मंगला गौरी व्रत विशेष तौर पर स्त्रियों का व्रत है। जो सावन माह के सभी मंगलवार को किया जाता है। इस दिन माता गौरी की पूजा होती है। चूंकि यह व्रत मंगलवार के दिन किया जाता है, इसलिए इसे मंगला गौरी व्रत कहते हैं। इस व्रत के करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। तथा घर में सुख-शांति आती है।
मंगला गौरी व्रत (Mangala Gauri Vrat)
मंगला गौरी व्रत विधि
इस दिन नित्य कर्मों से निवृत्त होकर नहाएं और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर एक पट्टे या चौकी पर लाल और सफेद कपड़ा रखें। सफेद कपड़े पर नौ ढेरी चावल की और लाल कपड़े पर सोलह ढेरी गेहूं को बनाएं। उसी पट्टे पर थोड़े से चावल रखकर गणेश जी की भी स्थापना करें। पट्टे के एक अन्य कोने पर गेहूं की एक छोटी-सी ढेरी बनाकर उस पर जल से भरा कलश रखें। कलश में आम के पत्ते भी रखें।
इसके बाद आटे का एक चौमुख दीपक बनाएं और घी डालकर दीपक प्रज्वलित करें। साथ में सोलह धूपबत्ती जलाएं। सबसे पहले गणेश जी की और बाद में कलश की विधिवत पूजा करें। फिर बेलपत्र चढ़ाकर पुनः कलश की पूजा करें। कलश पर सिंदूर और बेलपत्र न चढ़ाएं।
इसके बाद चावल की जो नौ ढेरियां (नवग्रह) बनाई थीं, उनकी पूजा करें। फिर गेहूं की सोलह ढेरियों की पूजा करें। इन पर हल्दी, मेहंदी तथा सिंदूर चढ़ाएं, परंतु खाली जनेऊ नहीं चढ़ाएं। इसके बाद कलावा लेकर पंडित जी को बांधे तथा उनसे अपने हाथ में भी बंधवाएं। तत्पश्चात् मंगला गौरी का पूजन प्रारंभ करें।
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गौरी पूजन के लिए एक थाली में चकला रख लें। फिर खस और मिट्टी की सहायता से गौरी की प्रतिमा बना लें। पहले मंगला गौरी की मूर्ति को जल, दूध, दही, घी, चीनी, शहद आदि का पंचामृत बनाकर स्नान कराएं। स्नान कराने के बाद कपड़े पहनाएं और नथ पहनाकर रोली, चंदन, सिंदूर, हल्दी, चावल, मेहंदी, काजल लगाकर सोलह तरह के फूल चढ़ाएं।
इसी प्रकार गौरी जी को सोलह-सोलह की संख्या में ही माला, जीरा, पान, सुपारी, धनिया, लौंग, इलायची, आटे के लड्डू, फल, पांच तरह के मेवे और सोलह तरह के पत्ते सोलह बार चढ़ाएं। इसी तरह सोलह बार सात तरह के अनाज, एक सुहाग की डिब्बी, एक डिब्बी में तेल, रोली, मेहंदी, काजल, हिंगुल सिंदूर, कंधा, शीशा, सोलह चूड़ियां और दक्षिणा चढाएं। विधिवत पूजा करने के बाद मंगला गौरी की कथा सुनें।
मंगला गौरी व्रत की कथा
प्राचीन काल में सरस्वती नदी के किनारे बसी नगरी विमलापुरी में चंद्रप्रभ नाम के राजा रहते थे। उन्होंने अप्सराओं के आदेशानुसार अपनी छोटी रानी विशालाक्षी से मंगलागौरी का व्रत करवाया था। किंतु मंदाविता महादेवी (राजा की बड़ी रानी) ने व्रत का डोरा तोड़ डाला और पूजन की निंदा की।
परिणामस्वरूप वह विधित हो गई और आम्र, सरोवर एवं ऋषिगणों से ‘गौरी कहां-गौरी कहां’ पूछने लगी। अंत में गौरी जी की कृपा से ही वे पूर्व अवस्था को प्राप्त हुई और फिर व्रत करके सुखपूर्वक रहने लगी।
व्रत फल
इस व्रत को करने से माता गौरी मनचाहा वरदान देती है। व्रती के सुहाग की लंबी उम्र होती है। इसके अलावा घर में शांति एवं खुशियां आती है। इस व्रत को सावन माह के करीब सोलह या बीस मंगलवारों (करीब चार पांच वर्ष) तक करना चाहिए। यह ज्यादा फलदायी होता है।
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