प्रथम पूज्य श्री गणेश, गणेश ही क्यों हैं पहले पूज्य?
प्रथम पूज्य श्री गणेश (Pratham Pujya Shree Ganesh): किसी भी शुभ कार्य में सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा होती है, क्योंकि शास्त्रों में उन्हें विघ्नहर्ता और ऋद्धि-सिद्धि का स्वामी कहा गया है। इनके स्मरण, ध्यान और आराधना करने मात्र से कामनाओं की पूर्ति होती है, विघ्नों का विनाश होता है। गणेश जी विद्या के देवता हैं। साधना के समय दूरदर्शिता आ जाए, उचित-अनुचित, कर्तव्य-अकर्तव्य की पहचान हो जाए, इसीलिए सभी शुभ कार्यों में, गणेश पूजन का विशेष महत्व है।
प्रथम पूज्य श्री गणेश (Pratham Pujya Shree Ganesh)
यही वजह है कि प्रत्येक शुभ कार्य के पूर्व ‘श्री गणेशाय नमः’ का उच्चारण कर, निम्न मंत्र को बोला जाता है –वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभः। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा।।
विघ्नहर्ता श्रीगणेश को जल तत्व का अधिपति कहा गया है, इसलिए, उनकी सर्वप्रथम पूजा का विधान है। मनुस्मृति के अनुसार, सर्वप्रथम उत्पन्न होने वाले तत्वों में ‘जल’ का अधिपति देव होने के कारण, गणेशजी ही प्रथम पूज्य के अधिकारी होते हैं।
गणेश ही क्यों हैं पहले पूज्य?
हालांकि प्रथम पूज्य को लेकर विभिन्न पुराणों में कई प्रसंग मिलते हैं। पद्मपुराण के अनुसार, एक दिन व्यासजी के शिष्य महामुनि संजय ने अपने गुरुदेव से उत्सुकता वश प्रश्न किया- “हे गुरुदेव ! कृपा कर आप मुझे देवताओं के पूजन का सुनिश्चित क्रम बताइए। अर्थात् प्रतिदिन की पूजा में सबसे पहले किसका पूजन करना चाहिए? ”
व्यासजी ने कहा – नित्य पूजा में विघ्नों को दूर करने गणेशजी की पूजा सर्वप्रथम करनी चाहिए। मैं इसके पीछे की कहानी बताता हूं, इसे विस्तार से सुनो। एक बार पार्वती देवी को देवताओं ने अमृत से तैयार किया हुआ एक दिव्य मोदक दिया। मोदक देखकर दोनों बालक स्कन्द तथा गणेश माता से मांगने लगे।
तब माता ने उन दोनों से कहा कि तुममें से जो धर्माचरण के द्वारा श्रेष्ठता प्राप्त करके आएगा, उसी को मैं यह मोदक दूंगी। फिर क्या था दोनों अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए निकल पड़े। स्कंद मयूर पर आरूढ़ होकर सारे तीथों की स्नान कर लिया।
इधर लंबोदरधारी गणेशजी माता-पिता की परिक्रमा करके पिताजी के सम्मुख खड़े हो गए। तब पार्वतीजे ने कहा- समस्त तीथों में किया हुआ स्नान, संपूर्ण देवताओं को किया हुआ नमस्कार, सब यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब प्रकार के व्रत, मंत्र, योग और संयम का पालन- ये सभी साधन माता-पिता के पूजन के सोलहवें अंश के बराबर भी नहीं हो सकते।
माता-पिता की भक्ति के कारण
गणेश ने हम दोनों (माता-पिता) की पूजा की है, इसलिए गणेश सैकड़ों पुत्रों और सैकड़ों गणों से भी बढ़कर है। अतः मोदक का असली हकदान गणेश ही हैं और यह मोदक मैं गणेश को ही अर्पण करती हूं। तत्पश्चात् महादेवजी बोले- माता-पिता की भक्ति के कारण ही इसकी प्रत्येक यज्ञ में सबसे पहले पूजा होगी।
प्रथम पूजा से सम्पूर्ण देवता प्रसन्न हों । ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार- श्रीगणेश के जन्म उत्सव पर अन्य सुर-समुदाय के साथ शनिदेवजी भी शंकरनंदन के दर्शनार्थ आए हुए थे। किंतु पत्नी द्वारा दिए गए शाप को याद कर शिशु को नहीं देखा। परंतु माता पार्वती के बार-बार कहने पर, ज्योंही उन्होनें गणेश की ओर देखा, उनका सिर धड़ से पृथक हो गया।
तब भगवान विष्णु पुष्पभद्रा नदी के अरण्य से एक गजशिशु का मस्तक काटकर लाए और गणेशजी के मस्तक पर लगा दिया। तब भगवान विष्णु ने श्रेष्ठतम उपहारों से पद्म प्रसन्न नयन गजानन की पूजा की और आशः प्रदान की- सर्वाग्रि तव पूजा च मया दत्ता सुरोत्तम। सर्वपूज्यश्च योगीन्द्रो भव वत्सेत्युवाच तम।। ‘सुरश्रेष्ठ!
मैंने सबसे पहले तुम्हारी पूजा की है, अतः वत्स । तुम सर्वपूज्य तथा योगीन्द्र होओ।’ उसके बाद से ही गणेश जी की पूजा जाने लगा। किंवदंतियां कुछ भी हो लेकिन हिंदू धर्म में गणेश को गणों का देव माना गया है और इसी मान्यता के साथ इनकी प्रथम पूजा होती है। ताकि किसी भी कार्य में कोई बाधा नहीं आए।
किससे प्रसन्न होते हैं गणेश
गणेश जी को तुलसी छोड़कर सभी पत्र-पुष्प प्रिय हैं। सभी अनिषिद्ध पत्र-पुष्प इन पर चढ़ाए जा सकते हैं। साथ ही गणपति को दूर्वा अधिक प्रिय है। सफेद या हरी दूर्वा अवश्य चढ़ानी चाहिए। दूर्वा की फुनगी में तीन या पांच पत्ती होना अति शुभ माना जाता है। वहीं तीन या पांच गांठ वाली दूर्वा (दूब-घास) अर्पण करने से गणेश जी शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं और भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।
इसके अलावा विघ्नहर्ता गणेश जी को शम्मी-वृक्ष का पत्ता भी पसंद है। शास्त्रों के अनुसार इससे विनायक को पूजने से मनुष्य ब्रह्मभाव को प्राप्त कर सकता है। नैवेद्य में गणेश जी को मोदक सबसे प्रिय है। पुराणों में मोदक को महाबुद्धि का प्रतीक बताया गया है।
किस रूप में किसकी पूजा
भगवान शिव पृथ्वी तत्व के अधिपति माने गए हैं इसलिए उनकी पार्थिव – पूजा का विधान है। वहीं भगवान विष्णु आकाश तत्व के अधिपति हैं, उनकी शब्दों द्वारा स्तुति का विधान है। जबकि शक्ति को अग्नि तत्व का अधिपति माना गया है इसलिए भगवती की अग्निकुंड में हवनादि के द्वारा पूजा का विधान है। गणपति को जल तत्व का अधिपति माना गया है। चूंकि पंच तत्वों में जल की उत्पति सबसे पहले हुई है इसलिए प्रथम पूजा के रूप में विनायक की पूजा सबसे पहले होती है।
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