रक्षाबंधन कब है? पवित्र स्नेह का पर्व है रक्षाबंधन
रक्षाबंधन कब है (Raksha Bandhan Kab Hai): रक्षाबंधन का धार्मिक, आध्यात्मिक तथा ऐतिहासिक महत्व है, जिसे परंपरागत रूप से हर्षोल्लास के साथ प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। जाने 2023 में राखी कब है? इस बार राखी का त्योहार, 30 अगस्त 2023 को है।
रक्षाबंधन कब है (Raksha Bandhan Kab Hai)
रिश्तो में औपचारिकताओं को कहीं जगह नहीं मिल पाती। रिश्तें दिल और मन के पवित्र बंधनों से बंधे हुए होते हैं। रक्षाबंधन का पर्व भी इसी हेतु भाई बहन के रिश्तों में पवित्रता और मधुरता का संगम है। रक्षाबंधन का त्यौहार अत्यंत धार्मिक, आध्यात्मिक तथा ऐतिहासिक है।
जिसे परंपरागत रूप से हर्षोल्लास के साथ प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन सुबह शौच क्रियाओं से निवृत्त होकर स्वच्छ हो जाएं। क्योंकि इस दिन देव पूजन, पितृ तर्पण आदि कर्मों का करने का विधान भी है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार दैत्यों पर विजय प्राप्त करने हेतु देवगणों ने देव गुरु बृहस्पति से उपाय पूछा – तब बृहस्पति ने रक्षा सूत्र का विधान कराया तथा इंद्राणी ने इस दिन ब्राह्मणों से रक्षा सूत्र लिया, जिससे इंद्रादि देवताओं को विजय प्राप्त हुई।
अन्य कथा के अनुसार, श्रीकृष्ण के हाथ में चोट के कारण जब रक्त बहने लगा, तब द्रोपदी ने अपनी साड़ी फाड़ कर उसे तुरंत कृष्ण के हाथ में भाई समझते हुए बांध दिया। श्री कृष्ण ने अपने भाई धर्म का निर्वाह करते हुए द्रौपदी को भरी सभा में अपमानित होने से बचा लिया तथा आजीवन उनकी रक्षा करते रहें।
रक्षाबंधन का महत्व
श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से, इस पर्व की महिमा के बारे में बताते हुए कहा कि इस व्रत को करने से रोग, शोक, भय तथा प्रेत बाधाओं से मुक्ति मिलती है तथा शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
इस दिन बहन रक्षा-सूत्र भाई की कलाई पर बांध कर उसकी प्रगति, उन्नति, आरोग्यता, पुत्र, धन, ऐश्वर्य की कामना करती है तथा भाई बहन की रक्षा और विकास हेतु आजीवन प्रयासरत रहता है।
इस दिन भाई-बहनों को स्नान आदि क्रियाओं से निवृत्त होकर उत्तर और पूर्वाभिमुख होकर बैठना चाहिए तथा भाई के माथे पर हल्दी चावल से टीका कर भाई को राखी बांधनी चाहिए। भाई-बहन को उपहार देकर प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करें।
बहन चाहे छोटी हो या बड़ी उनका पैर अवश्य छूकर आशीर्वाद लें। इससे घर और जीवन में उन्नति के अवसर आते हैं तथा रोग, शोक का नाश होता है। साथ ही प्रेत बाधा की आशंका तथा प्रेत बाधाओं की पीड़ा समाप्त हो जाती है। जिनको बहन नहीं हो, उन्हें मुंहबोली बहन या किसी ब्राह्मण से रक्षा सूत्र अवश्य बंधवाना चाहिए।
विभिन्न धार्मिक कार्यों में रक्षा सूत्र बांधने का विधान है। अर्थात पंडित जी द्वारा या फिर धर्म स्थानों में कलाई पर रक्षा सूत्र भक्तजनों की कलाई में या फिर पुरोहित द्वारा यजमान की कलाई में रक्षा सूत्र बांधने की परंपरा रही है। क्योंकि इसे किसी भी अनुष्ठान के लिए शुभ माना गया है।
हां, भद्रा काल में रक्षाबंधन नहीं बांधना चाहिए। ऐसा शास्त्रों का मत है कि रक्षाबंधन के पर्व को मध्याह्न या अपराहन श्रावण पूर्णिमा को मनाया जाना चाहिए। इस तरह शुभ घड़ी शुभ मुहूर्त में प्रसन्न चित्त होकर निष्कपट भाव से पवित्र स्नेह और मधुरता के साथ इस भाई बहन के त्यौहार को मनाएं और जीवन को खुशियों से मंहकाए।
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