शनिदेव ! मेरे ऊपर कृपा करेंगे
शनिदेव (ShaniDev): घर में अर्थ लाभ न हो रहा हो, कर्ज से परेशान हों या जीवन में सुख का अभाव हो, तो इससे छुटकारा पाने के लिए मुद्रा तंत्र का प्रयोग करें। इससे आर्थिक लाभ के साथ-साथ कर्ज से मुक्ति भी मिलती है –
शनिदेव (ShaniDev)! मेरे ऊपर कृपा करेंगे
मुद्रा तंत्र का प्रयोग
जिस शनिवार को अमावस्या पड़ रही हो, तो उस दिन प्रातः सूर्योदय से पूर्व ही स्नान करके घर से उत्तर की ओर स्थित पीपल अथवा बरगद के पेड़ के पास के पास जाकर, प्रार्थना करते हुए, एक बड़ा-सा पत्ता तोड़ लाएं। ध्यान रहे, पत्ता भूमि पर नहीं गिरना चाहिए। उसे घर लाकर देवस्थान में स्नान कराकर,आसन पर स्थापित कर दें।
फिर नागकेसर को पानी में चंदन की भांति पीसकर उसके लेप से उस पत्ते पर मंत्र लिखें। मंत्र लिखने के लिए लेखनी के रूप में दुर्वा का प्रयोग करना चाहिए। यह समस्त साधना पूर्वाभिमुख होकर ही करें। पत्ते पर लिखा जाने वाला मंत्र इस प्रकार है। “शांतिरस्तु, पुष्टिरस्तु, तुष्टिरस्तु “
इस मंत्र को लिखने के पश्चात उस पत्ते की चंदन, कुमकुम, पुष्प, धूप, दीप आदि से पूजा करें। पूजा के उपरांत उस पत्ते को अपने इष्ट देवता का स्मरण करते हुए, किसी धर्म ग्रंथ जैसे रामायण, गीता, दुर्गा सप्तशती, भागवत अथवा अन्य किसी पुराण आदि में उस अभिमंत्रित रख दें।
उसके बाद प्रत्येक शनिवार को प्रातः यही साधना, इसी प्रकार से दोहराएं। लगातार सात शनिवार को इस प्रयोग को करना है। अंतर केवल यही है कि हर शनिवार को पूजा के बाद उस पत्ता को ग्रंथ में उसी जगह रख दें, जहां पिछली बार रखा था।
उसे रखने से पूर्व पिछला पत्ता निकाल लेना चाहिए। पूजा समाप्त होने पर वह पिछली बार वाला पत्ता किसी नदी या तालाब, जैसे एकांत पवित्र स्थान में विसर्जित कर दें। इस तरह, कुल सात शनिवार तक इस साधना को करते रहें।
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आगे की विधि
फिर सातवें शनिवार को अंतिम अर्थात सातवें पत्ते को ग्रंथ में न रखकर आसन पर ही रहने दें और उस पर कोई मुद्रा (सिक्का) धोकर रखें तथा उस मुद्रा की भी चंदन, पुष्प, धूप-दीप आदि से पूजा करें।
इस दिन उड़द की दाल के तीन पकौड़े बनवाकर, उसे नैवेद्य के रूप में उस पत्ते पर आसीन सिक्के को अर्पित करें। इसके पूजा संपन्न हो जाने के बाद सिक्के को कील के सहारे घर के मुख्य द्वार की देहली पर जड़ दें। जड़ते समय भी अपने इष्ट देवता का स्मरण करते रहें।
ध्यान रहे, समस्त क्रियाएं पूर्वाभिमुख स्थिति में ही सम्पन्न हो। मुद्रा को यथास्थान जड़ देने के बाद पुनः पूजा स्थान पर आएं और भोग लगाए गए तीनों पकौड़े को प्रसाद के रूप में ग्रहण करें। इस प्रसाद का कोई भी अंश किसी को भी न दें। यह तीनों पकौड़े स्वयं साधक के लिए होते हैं। इसके बाद सातवां पत्ता भी पहले की भांति विसर्जित कर दें।
साधना संपन्न हो जाने के बाद प्रत्येक शनिवार को हनुमान जी का दर्शन करें। यदि संभव न हो, तो उस बरगद अथवा पीपल के वृक्ष का दर्शन कर लेना चाहिए, जहां से पूजा के लिए पत्ते लाए जाते थे। वहां जाते समय यह धारणा मन में होनी चाहिए कि इस बीच में साक्षात शनिदेव का वास है और यह अवश्य ही मेरे ऊपर कृपा करेंगे।
यह मुद्रा तंत्र साधकों को ऋण मुक्त करके विभिन्न स्रोतों से अर्थ लाभ कराता है। इसके प्रभाव से दैनिक आय में वृद्धि हो जाती है और घर में धन्य धान्य की वृद्धि होती है।
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अस्वीकरण – इस लेख में दी गई जानकारियों पर Mandnam.com यह दावा नहीं करता कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले, कृपया संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।