क्या होगा सूर्य ग्रहण का प्रभाव?
सूर्य ग्रहण का प्रभाव (Surya Grahan Ka Prabhav): सूर्य जो ज्योतिषीय दृष्टि से आत्मा, पिता तथा कुंडली में नवम भाव का कारक और सिंह राशि का स्वामी है। इसे विश्व आत्मा कहा जाता है। सूर्य अपने प्रकाश और ऊर्जा के द्वारा संसार में जीवन शक्ति और गतिशीलता को बढ़ाता है। धरती का प्रत्येक खगोलीय घटना से प्रत्यक्ष संबंध है। जब भी सूर्यादि ग्रहों में कोई प्राकृतिक घटनाएं घटती हैं तो उसका सीधा असर धरती के प्रत्येक जीवधारी पर पड़ता है। शायद यही वजह है कि ग्रहण को लेकर ग्रंथों में तरह-तरह की चर्चाएं हैं।
(Surya Grahan Ka Prabhav) सूर्य ग्रहण का प्रभाव
आमतौर पर लोग ग्रहण के दौरान कुछ चीजों को निषेध मानते हैं। चूंकि ग्रहण शुरू होने के 10 से 12 घंटे पूर्व सूतक प्रारंभ हो जाता है। मान्यता यह है कि इस काल में खाद्य वस्तुएं (खासकर पका हुआ भोजन) दूषित हो जाती हैं। इसलिए इस समय सभी तरह की खाद्य वस्तुओं और जलादि में तुलसी, कुश या फिर गंगा जल छिड़कने का विधान है, जिससे वह दूषित नहीं होती है। पका हुआ भोजन बचाकर नहीं रखें। इसे पहले ही समाप्त कर दें, क्योंकि वह पूर्णतया दूषित हो जाता है। ग्रहण के समय गायत्री मंत्र का जाप, पितृ तर्पण, वैदिक मंत्रों, आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करना चाहिए।
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प्रचलित कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय अमृत कलश के बंटवारे को लेकर देव और दैत्यों में संघर्ष छिड़ गया। जिसे शांत करने हेतु मोहनी रूप में श्री हरि विष्णु ने अवतार लिया। फिर देव और दैत्यों को अलग-अगल कतार में बैठा कर विष और अमृत का बंटवारा करने लगे। तभी राहु नामक दैत्य देव रूप धारण कर देवों की कतार में बैठ गया और अमृत पान करने लगा। इस दृश्य को सूर्य और चंद्रमा ने देख लिया था।
उन्होंने तुरंत भगवान विष्णु को इस बात की जानकारी दी। अमृत पान कर चुके राहु का सिर श्री हरि ने चक्र से काट दिया। लेकिन राहु का शरीर सिर्फ दो भागों में बंट गया, जिसे राहु और केतु के नाम से जाना जाता है। किंतु अमृत पान कर लेने से राहु बच गया और आज भी वह सूर्य और चंद्र को ग्रसने की कोशिश करता है। जिसे ग्रहण के रूप में देखते हैं।
गंगा स्नान का महत्त्व
ग्रहण के दौरान गंगा स्नान का भी विशेष महत्व रहता है। लाखों की संख्या में लोग स्नान करने हरिद्वार, संगम जैसी जगहों पर जाते है। स्नान करने के पश्चात् दान आदि भी करते हैं। मान्यता है कि ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, गंगा, यमुना आदि तीर्थों में स्नान का अनंत फल होता है। कहते हैं, इस समय गंगा स्नान करने से ब्रह्म हत्या, पर स्त्री गमन और गौ-हत्या जैसे बड़े पाप नष्ट हो जाते हैं।
इस समय गंगा में खड़े होकर अपने आराध्य देव का स्मरण करना चाहिए। इससे मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही नहीं ग्रहण के उपरांत मोक्ष होने पर स्नादि कर अन्न, जल, वस्त्र, फलों आदि वस्तुओं का दान भी करना चाहिए।
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फल देता है मंत्रों का जाप
ग्रहण काल में कोई भी मंत्र का जाप किया जाए तो शीघ्र फलदायी होता है। इस समय किया गया कोई भी मंत्र जाप अशुभ फल के प्रभाव को कम करता है। आइए जानें कौन-मंत्र ग्रहण काल में लाभ देता है।
1. महामृत्युंजय का जाप
सभी कष्टों को दूर करने वाला होता है, श्रावण मास में महामृत्युंजय का जाप सबसे ज्यादा प्रभावी होता है। क्योंकि ग्रहण के अशुभ प्रभाव से महामृत्युंजय जाप से बचा जा सकता है।
किसी भी कार्य सिद्धि के लिए यह समय मंत्र जाप के लिए सर्वोत्तम हैं।
2. गायत्री मंत्र
इस ग्रहण काल में वशीकरण, शत्रु कष्ट निवारण हेतु, मन की शांति हेतु गायत्री मंत्र का जाप उत्तम रहता है।
3. सूर्य गायत्री मंत्र
सूर्य गायत्री मंत्र का ग्रहण काल में दो या अधिक माला जाप करें। यदि ग्रहण आपको अशुभ फल दे रहा हो तो उसके लिए ग्रहण काल में महामृत्युंजय का जाप करना अच्छा माना जाता है।
4. आदित्य हृदय स्त्रोत
खग्राससूर्य ग्रहण के कुप्रभावों से बचने के लिए गर्भवती स्त्री को आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। अगर यह स्त्रोत न मिले तो श्रीराम चरित मानस अथवा राम रक्षा स्त्रोत अथवा हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। इसे गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष फलदायी माना गया है। इससे होने वाली संतान को भी फायदा होगा है।
इसके अलावा पूरे दिन घर से बाहर न निकलें। स्त्री को चाहिए कि वह कही स्थित बैठी रहे। पैर मोड़कर न बैठे, कोई चीज काटें या फाडें नहीं।
जिन राशियों के लिए यह सूर्य ग्रहण नुकसानदायक है, उन्हें भी यह सारी चीजें करनी चाहिए। इसके अलावा पूरा समय धार्मिक पुस्तकें अथवा टीवी में धार्मिक सीरियल देखकर बिताना चाहिए।
अन्य उपाय में सिर से पैर तक की लंबाई का एक धागा, लाल मसूर, उडद, गुड, गेहूं, छोटा सोने का टुकड़ा लेकर रख लें। इन सभी चीजों को ग्रहण समाप्त होने पर अपने ऊपर आठ बार वार कर किसी गरीब को दान करने से सूर्यग्रहण का प्रभाव कम हो जाता है। इस तरह सूर्य ग्रहण का प्रभाव को कम किया जा सकता है।
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सूर्य ग्रहण काल में वर्जित है
ग्रहण काल में बहुत सारी चीजें वर्जित मानी गई हैं। ग्रहण के सूतक और ग्रहण काल में खाना पीना, संभोगादि कार्य वर्जित होता है। हां, ग्रहण के सूतक में बाल, वृद्ध और रोगी व्यक्तियों के लिए खाने-पिने और सोने का निषेध नहीं है।
कहते है, पका हुआ अन्न, कटी हुई सब्जी और फल ग्रहण काल में दूषित हो जाते है। उन्हें खाना नहीं चाहिए। लेकिन तेल या घी में पका अन्न, घी, तेल, दूध, दही, लस्सी, मक्खन, पनीर, अचार, चटनी, मुरब्बा में तिल या कुश रख देने से ये पदार्थ दूषित नहीं होते। इसके अलावा आप चाहे तो इन वस्तुओं में तुलसी के पत्ते भी रख सकते हैं।
सूखे खाद्य पदार्थों में तिल या कुश डालने की जरूरत नहीं होती है। इस समय में गर्भवती महिलाओं को खास एहतियात बरतने के लिए कहा जाता है। जैसे, इनको घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए और किसी भी प्रकार से कोई सब्जी काटना, सीना-पिरोना आदि कार्यों से बचना चाहिए।
क्योंकि इसका प्रभाव गर्भ में पल रहे बच्चे पर पड़ता है। ज्योतिष के अनुसार ग्रहण काल में गर्भ भी नहीं ठहरना चाहिए, नहीं तो वह जन्म लेने वाला बालक ठीक नहीं होगा।
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