तिलक लगाने का तरीका, जाने अनामिका उंगली से ही तिलक क्यों?
तिलक लगाने का तरीका (Tilak Lagane Ka Tarika): हिंदू परंपरा में मस्तक पर तिलक लगाना शुभ माना जाता है, इसे सात्विकता का प्रतीक माना जाता है। परन्तु लोगो में भ्रम रहता है कि तिलक किस अंगुली से लगाना चाहिए और तिलक लगाने का तरीका क्या होता है। तो आईये जानते है इससे जुड़ी और भी कई मान्यताएं तथा तिलक लगाने के फायदे के बारे में –
तिलक लगाने का तरीका (Tilak Lagane Ka Tarika)
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माथे पर तिलक कैसे लगाएं ?
मस्तिष्क के मध्य ललाट में जिस स्थान पर टीका या तिलक लगाया जाता है, वह भाग आज्ञाचक्र है। शास्त्रों के अनुसार पीनियल ग्रंथि का स्थान होने की वजह से, जब पीनियल ग्रंथि को उद्दीप्त किया जाता है, तो मस्तिष्क के अंदर एक तरह के प्रकाश की अनुभूति होती है।
हमारे ऋषि गण इस बात को भलीभांति जानते थे, पीनियल ग्रंथि के उद्दीपन से आज्ञा चक्र का उद्दीपन होगा। इसी वजह से धार्मिक कर्मकांड, पूजा-उपासना और शुभ कार्यों में टीका लगाने का प्रचलन शुरू हुआ। किसी भी पूजा, पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान आदि का शुभारंभ श्रीगणेश पूजा से ही आरंभ होता है।
उसी प्रकार हर पूजा में तिलक को भी विशेष दर्जा प्राप्त है। बिना तिलक धारण किए कोई भी पूजा-प्रार्थना आरंभ नहीं होती। धार्मिक मान्यता के अनुसार सुने मस्तक को अशुभ और असुरक्षित माना जाता है। इसलिए चंदन, रोली, कुमकुम, सिंदूर तथा भस्म का तिलक लगाकर उसको शुद्ध किया जाता है।
तिलक का महत्व
वही तंत्र शास्त्र के अनुसार माथे को इष्ट देव का प्रतीक समझा जाता है। हमारे इष्ट देव की स्मृति हमें सदैव बनी रहे, इस तरह की धारणा को ध्यान में रखकर कि तिलक धारण किया जाता है। तंत्रशास्त्र में तिलक की अनेक क्रिया-विधियां विभिन्न कार्यों की सफलता के लिए बताई गई है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कालपुरुष की गणना प्रथम राशि मेष से की गई है। महर्षि पराशर के सिद्धांत के अनुसार कालपुरुष के मस्तक वाले स्थान में मेष राशि स्थित है। जिसका स्वामी मंगल ग्रह सिंदूरी लाल रंग का अधिष्ठाता है।
सिंदूरी लाल रंग राशि पथ की मेष राशि का रंग है। इसलिए इस रंग (लाल रोलिया या सिंदूर) का तिलक मेष राशि वाले स्थान (मस्तक) पर लगाया जाता है।
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तिलक किस अंगुली से लगाना चाहिए?
तिलक लगाने में सहायक हाथ की उंगलियों का भी भिन्न-भिन्न महत्व बताया गया है। तिलक धारण करने में अनामिका उंगली शांति प्रदान करती है। मध्यमा उंगली मनुष्य की आयु वृद्धि करती है। जबकि अंगूठा प्रभाव, ख्याति और आरोग्य प्रदान कराता है।
इसलिए राजतिलक अथवा विजय तिलक हमेशा अंगूठे से ही करने की परंपरा रही है। तर्जनी मोक्ष देने वाली उंगली है। सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार अनामिका तथा अंगूठा तिलक करने में सदा शुभ माने गए हैं।
अनामिका सूर्य पर्वत की अधिष्ठाता उंगली है। यह उंगली सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है, जिसका तात्पर्य यही है कि सूर्य के समान, दृढ़ता, तेजस्व, प्रभाव और सम्मान सूर्य जैसी निष्ठा-प्रतिष्ठा बनी रहे।
दूसरा अंगूठा है जो हाथ में शुक्र क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है। शुक्र ग्रह जीवन शक्ति का प्रतीक है। संजीवनी विद्या का प्रणेता तथा जीवन में सौम्यता, सुख-साधन तथा काम-शक्ति देने वाला शुक्र ही संसार का रचयिता है।
तर्जनी से लाल या सफेद चंदन टीका पूर्व दिशा की ओर मुंह करके लगाया जाता है। मध्यमा से ऐश्वर्य के लिए सिंदूर का टीका क्रमशः पूर्व दिशा, उत्तर, पश्चिम दिशा में से किसी भी दिशा की तरफ मुंह करके लगाया जाता है। अनामिका उंगली से धन-वैभव, सुख शांति के लिए केसर का टीका क्रमशः पूर्व दिशा, उत्तर, पश्चिम दिशा में से किसी भी दिशा की तरफ मुंह करके लगाया जाता है।
इसी तरह सभी धर्म संप्रदाय के प्रति सम्मान दृष्टि रखने वाले अंगूठा से चंदन का टीका लगाते हैं।
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