वास्तु के अनुसार करें भूमि का चयन, वास्तु सम्मत ही हो भूमि का चयन
वास्तु के अनुसार करें भूमि का चयन (Vastu Ke Anusar Karen Bhoomi Ka Chayan): भवन निर्माण से पूर्व उचित मिट्टी, दिशा और भूखंड के आकार का निर्णय काफी सोच-समझ कर करना चाहिए। क्योंकि वास्तु में इनका विशेष महत्व है –
वास्तु के अनुसार करें भूमि का चयन (Vastu Ke Anusar Karen Bhoomi Ka Chayan)
किसी भी निर्माण में भूमि और मिट्टी के चयन में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। क्योंकि वास्तविक जीवन में इन तत्वों का प्रत्यक्ष प्रभाव दिखता है। भवन निर्माण के समय ध्यान देने वाली कुछ विशेष बातें –
मिट्टी
वास्तु में सुगंधित मिट्टी वाली भूमि ब्राह्मणों के निवास के लिए श्रेष्ठ मानी गई है। जबकि लाल रंग की कसैले स्वाद वाली भूमि क्षत्रिय, राजनेता, सेना और पुलिस के अधिकारियों के लिए शुभ मानी गई है। हरे या पीले रंग की खट्टे स्वाद वाली भूमि व्यापारियों, व्यापारिक स्थलों तथा वित्तीय संस्थानों के लिए शुभ होती है। वहीं काले रंग की कड़वे स्वाद वाली भूमि को शूद्रों के लिए उपयुक्त बताया गया है।
उपयुक्त भूखंड
समतल, सुगंधित और ठोस भूमि भवन बनाने के लिए उपयुक्त है। खुदाई के दौरान यदि भूमि से चींटी, दीमक, अजगर, सांप, कपड़े, राख, कौड़ी, जली लकड़ी या लोहा मिलें तो यह शुभ नहीं माना जाता। भूमि की ढलान उत्तर और पूर्व की ओर हो तो शुभ होती है। यदि छत की ढलान ईशान कोण में हो तथा दक्षिण या पश्चिम में ऊंचे भवन, पहाड़, टीले या पेड़ हो तो यह शुभ माने जाते हैं। भूखंड से पूर्व या उत्तर की ओर कोई नदी या नहर हो और उसका प्रवाह उत्तर या पूर्व की ओर हो तो शुभ होता है। भूखंड के उत्तर, पूर्व या ईशान में भूमिगत जल स्रोत शुभ माना जाता है।
आयताकार, वृताकार व गोमुखी भूखंड गृह वास्तु में शुभ होता है। वृताकार भूखंड में निर्माण भी वृताकार ही होना चाहिए। सिंह मुखी भूखंड व्यावसायिक वास्तु के लिए शुभ होता है। भूखंड के उत्तर और पूर्व में मार्ग शुभ माने जाते हैं। यह मार्ग यदि दक्षिण-पश्चिम हो तो यह स्थल व्यापार कार्य के लिए शुभ होता है। व्यापारिक स्थल के दक्षिण और पश्चिम में मार्ग लाभदायक माने जाते हैं।
बेसमेंट
आवासीय भूखंड में बेसमेंट नहीं बनानी चाहिए। बेसमेंट बनानी आवश्यक हो तो उत्तर और पूर्व में ब्रह्म स्थान को बचाते हुए बनानी चाहिए। बेसमेंट की ऊंचाई कम से कम नौ फीट हो और तीन फीट तल से ऊपर हो ताकि प्रकाश और हवा आ जा सके।
डिजाइन
भवन की प्रत्येक मंजिल में छत की ऊंचाई बारह फुट रखनी चाहिए। दस फुट से कम तो नहीं होनी चाहिए। भवन का दक्षिणी भाग हमेशा उत्तरी भाग से ऊंचा होना चाहिए। भवन का पश्चिमी भाग हमेशा पूर्वी भाग से ऊंचा होना चाहिए।
भवन में नैर्ऋत्य सबसे ऊंचा और ईशान सबसे नीचा होना चाहिए। खिड़कयां घर के उत्तर या पूर्व में अधिक तथा दक्षिण या पश्चिम में कम बनानी चाहिए। ब्रह्म स्थान को खुला, साफ तथा हवादार रखना चाहिए। गृह निर्माण में 81 पद वाले वास्तु चक्र में नौ स्थान ब्रह्म स्थान के लिए नियत किए गए है।
चार दीवारी के अंदर सबसे ज्यादा खुला स्थान पूर्व में छोड़े। उससे कम उत्तर में, उससे कम पश्चिम में, सबसे कम दक्षिण में छोड़ें। दीवारों की मोटाई सबसे ज्यादा दक्षिण में, उससे कम पश्चिम में, उसले कम उत्तर में, सबसे कम पूर्व में रखें।
घर के ईशान कोण में पूजा घर, कुंआ, बोरिंग, बच्चों का कमरा, भूमिगत वाटर टैंक, बरामदा, लिविंग रूम, ड्राइंग रूम और बेसमेंट बनाई जा सकती है।
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घर की पूर्व दिशा में स्नान घर, तहखाना, बरामदा, कुआं, बगीचा और पूजा घर बनाया जा सकता है।
घर के आग्नेय कोण में रसोई घर बिजली के मीटर, जेनरेटर, इन्वर्टर व मेन स्विच लगाए जा सकते हैं। घर की दक्षिण दिशा में मुख्य शयन कक्ष, भंडार, सीढ़ियों व ऊंचे वृक्ष लगाए जा सकते हैं।
मकान के नैर्ऋत्य कोण में शयन कक्ष, भारी और कम उपयोगी सामान का स्टोर, सीढ़ियां, ओवर हैड वाटर टैंक व शौचालय बनाये जा सकते हैं।
घर की उत्तर दिशा में कुआं, तालाब, बगीचा, पूजा घर, तहखाना, स्वागत कक्ष, कोषागार या लिविंग रूम बनाए जा सकते हैं।
घर का भारी सामान नैर्ऋत्य कोण, दक्षिण या पश्चिम में रखना चाहिए। घर का हल्का सामान उत्तर, पूर्व व ईशान में रखना चाहिए। घर के नैर्ऋत्य भाग में किराएदार या अतिथि को नहीं ठहराना चाहिए।
ध्यान दें
सोते समय सिर पूर्व या दक्षिण की तरफ होना चाहिए। अपने घर में पूर्व दिशा में सिर करके सोना चाहिए, ससुराल में दक्षिण सिर करके, परदेश में पश्चिम सिर करके सोना चाहिए और उत्तर दिशा में सिर करके कभी नहीं सोना चाहिए। दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य प्रतिमा, तीन देवी प्रतिमा, दो गोमती चक्र और दो शालीग्राम नहीं रखने चाहिए।
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अस्वीकरण – इस लेख में दी गई जानकारियों पर Mandnam.com यह दावा नहीं करता कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले, कृपया संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।