विवाह में हो रही हो देरी तो, कहीं शनि तो नहीं विवाह में बाधक
विवाह में हो रही हो देरी तो (Vivah Mein Ho Rahi Ho Deri To): विवाह एवं वैवाहिक जीवन के विषय में ग्रहों की स्थिति काफी कुछ बताती है। कन्या या वर की कुंडली के सातवें भाव में स्थित ग्रह ही वैवाहिक जीवन को सफल और असफल बनाते हैं। शनिदेव की भूमिका विवाह के विषय में क्या है? आईये जानें, विवाह में हो रही हो देरी तो या विवाह नहीं हो रहा है तो इसका कारण और उपाय क्या है?
विवाह में हो रही हो देरी तो (Vivah Mein Ho Rahi Ho Deri To)
कुंडली के सातवें भाव को विवाह और जीवनसाथी का घर कहा जाता है। इस भाव में स्थित ग्रहों के अनुसार ही व्यक्ति की को शुभ और अशुभ फल मिलता है। यदि इस भाव का स्वामी शनि हो तो विवाह में कई तरह की अड़चनें आती हैं। हालांकि शनि का यह प्रभाव कुंडली में स्थित विभिन्न भावों पर निर्भर है।
विवाह में देरी के कारण और उपाय
विवाह योग में शनि की भूमिका क्या है? यह कैसे वैवाहिक जीवन को प्रभावित करता है, इसे जानने के लिए इन्हें जानें –
सप्तम शनि का प्रभाव
सप्तम भाव विवाह एवं जीवनसाथी का घर माना जाता है। इस भाव में शनि का होना विवाह और वैवाहिक जीवन के लिए शुभ संकेत नहीं माना जाता है। इस भाव में शनि होने पर व्यक्ति की शादी विलंब से होती है। यदि इसी भाव में शनि नीच का हो, तो इस स्थिति में व्यक्ति की शादी ऐसे जातक से होती है, जो उम्र में उससे काफी बड़ा होता है।
शनि के साथ सूर्य की युति अगर सप्तम भाव में हो तो विवाह देर से होता है और कलह से घर अशांत रहता है। वहीं चंद्रमा के साथ शनि की युति हो रही हो तो व्यक्ति अपने जीवन साथी के प्रति प्रेम नहीं रखता। किसी अन्य के प्रेम में गृह कलह को जन्म देता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सप्तम शनि एवं उससे युति बनाने वाले ग्रह, विवाह और गृहस्थ जीवन के लिए सुखकारक नहीं माने जाते।
शनि और विवाह में विलंब
यदि नवमांश कुंडली या जन्म कुंडली में शनि और चंद्र की युति हो रही हो तो शादी की बात 30 वर्ष की आयु के बाद ही सोचनी चाहिए, क्योंकि इससे पहले शादी की संभावना नहीं बनती है। चंद्र और शनि दोनों मिलकर शादी में अड़चन पैदा करते हैं।
जिनकी कुंडली में चंद्रमा सप्तम भाव में होता है और शनि लग्न में उनके साथ भी यही स्थिति हो तो ऐसे लोगों की शादी असफल होने की भी संभावना प्रबल रहती है। अगर आपके जन्मपत्री में लग्न स्थान से शनि द्वादश में हो और सूर्य द्वितीय भाव में तथा लग्न कमजोर हो तो इस स्थिति में भी व्यक्ति की शादी बहुत विलंब से होती है या ऐसे लोग परिस्थितिवश शादी भी नहीं करते।
शनि जिस कन्या की कुंडली में सूर्य या चंद्रमा से युत या दृष्ट होकर लग्न या सप्तम में होते हैं उनकी शादी में भी बाधा आती है। वहीं अगर कुंडली के छठें भाव में शनि उपस्थित हो तथा सूर्य आठवें भाव में कमजोर या सातवें में पाप पीड़ित हो, तो भी विवाह में बाधाएं आती हैं।
अगर शनि और राहु की युति सप्तम भाव में होती है तब विवाह सामान्य से अधिक आयु में होता है यानी शादी देर से होती है। इसी प्रकार की स्थिति तब भी होती है जब शनि और राहु की युति लग्न में होती है और वह सप्तम भाव पर दृष्टि डालते हैं।
अगर आप की जन्मपत्री में शनि राहु के साथ हो तथा सातवें भाव का स्वामी और शुक्र कमजोर रहता है तो विवाह अति विलंब से हो पाता है। अगर ऐसी कोई भी स्थिति आपकी कुंडली में बन रही हो तो ज्योतिषी की सलाह से इसका निवारण करें। क्योंकि ज्योतिषशास्त्र में इसका भी समाधान है।
क्या है उपाय?
जिन कन्याओं के विवाह में शनि के कारण विलंब हो रहा है, उन्हें हरितालिका व्रत करना चाहिए। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिदेव की पूजा करनी चाहिए। अगर जातक पुरुष है तो उन्हें भी शनिदेव की पूजा-उपासना करनी चाहिए। इससे लाभ मिलता है और उनकी शादी जल्दी हो जाती है।
गणना करते समय
यदि कन्या और वर की जन्मकुंडली न हो और दोनों के नाम परस्पर मिलान में शुभ न हो तो आवश्यकता होने पर कन्या का नाम बदला जा सकता है, वर का नहीं। वर का प्रसिद्ध नाम तथा कन्या का जन्म का नाम, कन्या का प्रसिद्ध नाम और वर का जन्म-नाम ऐसा विपरीत कदापि न लें, यह वर-कन्या के लिए हानिप्रद है, इससे वैवाहिक दोष माना गया है।
गणना करते समय दोनों का नाम ही लें और जन्म नाम न हो तो दोनों के प्रसिद्ध नाम लें। दो सगी बहनों का विवाद, दो सगे भाइयों से न करें। दो सगी बहनों या सगे भाइयों का एक संस्कार में शादी न करें। लड़की के विवाह के पीछे लड़के का विवाह हो सकता है।
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अस्वीकरण – इस लेख में दी गई जानकारियों पर Mandnam.com यह दावा नहीं करता कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले, कृपया संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।